गर्मी व वर्षा के मौसम में हर घर के पास लौकी, तोरई, चचिंडा, ककड़ी, करेला, कद्दू आदि सब्जियों की बेलें देखने को मिलती हैं। कई कृषक इन फसलों की व्यवसायिक खेती भी करते हैं।
फसल उत्पादन प्राप्त करने के महत्वपूर्ण घटक
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अनुकूल जलवायु, भूमि एवं उन्नतिशील किस्म का चुनाव, उचित समय पर बीज की बुवाई, सही मात्रा में उर्वरकों एवं पोषक तत्त्वों का प्रयोग, खरपतवार नियंत्रण, आवश्यकतानुसार निराई गुड़ाई, सिंचाई तथा फसल की कीट व्याधियों से यथोचित सुरक्षा आदि अच्छा फसल उत्पादन प्राप्त करने के महत्वपूर्ण घटक हैं। इन सबके अतिरिक्त् आवश्यकता अनुसार सहारा व समय-समय पर बेलों की उचित कटाई छंटाई कर कृषक इन बेल वाली सब्जियों से भरपूर उपज व अधिक आर्थिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
उड़ने वाले कीट और हवा परागण में निभाते प्रमुख भूमिका
कद्दू वर्गीय फसलों के पौधे द्विलिंगी (Monoecious) होते हैं अर्थात एक ही पौधे पर नर व मादा पुष्प आते हैं। बेल पर नर व मादा पुष्प अलग अलग लगते हैं। मादा पुष्प में नीचे छोटा सा फल लगा होता है जब कि नर पुष्प सीधे डंडी पर खड़ा रहता है। पौधों पर फल तभी विकसित होते हैं जब पौधों पर मादा फूल विकसित होते हैं और खिले हुए नर फूल से परागकण खिले हुए मादा फूल के वर्तिकाग्र में गिरकर परागण की प्रक्रिया को पूर्ण करते हैं। परागण की इस प्रक्रिया में उड़ने वाले कीट और हवा प्रमुख भूमिका निभाते हैं।
मादा फूलों की संख्या बढ़ने से उपज में भी कई गुना बढ़ोत्तरी की जा सकती है
शुरूआत में बेलों पर फूल तो आते हैं किन्तु कुछ समय बाद झड़ जाते हैं क्योंकि शुरू में लम्बे समय तक मुख्य तना जिसे हम प्रथम पीढ़ी की शाखा (First generation branch) तथा मुख्य तने से निकली शाखाओं जिन्हें द्वितीय पीढ़ी की शाखाएं (Second generation branch) कहते हैं पर नर फूल ही आते हैं। मादा फूल तीसरी पीढ़ी की शाखाओं पर ही दिखाई देते हैं।
सामान्य रूप में लौकी, खीरा, करेला, चचिन्डा व कद्दू की फसलों में नर व मादा फूलों का अनुपात 9ः1 अर्थात 9 नर फूलों पर एक मादा फूल होता है। किन्तु किसान 3जी कटिंग को अपना कर बेलों में मादा फूलों का अनुपात बढ़ा सकते हैं। इस प्रकार मादा फूलों की संख्या बढ़ने से उपज में भी कई गुना बढ़ोत्तरी की जा सकती है।
किसान 3जी कटिंग कैसे करें
बीज अंकुरण के बाद जैसे जैसे पौधा बढ़ते जाए शुरू की चार पत्तियों तक कोई भी साइड ब्रांच न निकलने दें। यदि कोई साइड ब्रांच निकल गई हो तो उसे ब्लेड से काट कर हटा लें। इस प्रकार पौधे में आगे निकलने वाली प्रत्येक शाखा (ब्रांच) में अन्त तक यानि पौधे की आयु पूरी होने तक शुरू की चार पतियों तक कोई भी शाखा नहीं निकलने दें।
पौधे की ऊर्जा द्वितीय व तृतीय पीढ़ी की शाखाओं के विकास पर लगे
पौधे को अगर जमीन पर या लकड़ी की झाड़ी के सहारे चढ़ाना हो तो पौधे पर 12-14 पत्तियां आने के बाद जब पौधा लगभग 2 मीटर लंबा हो जाय मुख्य तने को आगे से तोड़ लें जिससे पौधे की ऊर्जा मुख्य तने की बढ़वार पर न खर्च हो कर द्वितीय व तृतीय पीढ़ी की शाखाओं के विकास पर लगे।
पौधे को यदि मचान पर या छतों पर चढ़ाना हो तो वहां तक पौधे को बढ़ने दें ध्यान रहें जब तक पौधा मचान तक नहीं पहुंचता मुख्य तने से शाखाएं न निकलने दें इससे पौधा ऊंचाई में तेजी से बढ़ेगा। मचान तक पहुंचने के बाद मुख्य तने को ऊपर से तोड़ लें। मुख्य तने के अग्र भाग को तोड़ने के बाद ही मुख्य तने से शाखाएं निकलने दें। मुख्य तने से तीन चार शाखाऐं ही विकसित होने दें। मुख्य तने से निकली यही शाखाएं द्वितीय पीढ़ी की शाखाए कहलाती हैं।
शाखाओं पर जब 12 पत्ते आ जायें तो इनके अग्र भाग को काट दें
मुख्य तने से निकली शाखाओं पर जब 12 पत्ते आ जायें तो इनके अग्र भाग को काट दें। इनसे निकलने वाली शाखाएं तृतीय पीढ़ी की शाखाएं होती हैं जिन पर मादा फूल लगते हैं। यदि एक या दो पौधे ही हों तो प्रत्येक पौधे पर परागण हेतु मुख्य तने से निकली एक शाखा को बढ़ने दें, जिससे तृतीय पीढ़ी की शाखाओं पर विकसित मादा फूलों के निषेचन (Fertilization) हेतु नर फूल मिलते रहें। व्यवसायिक खेती में 12 पौधों के बीच एक पौधे में 3जी कटिंग नहीं करनी चाहिए। पौधे में शाखाओं की संख्या इस प्रकार नियंत्रित रखें कि पूरे पौधों को सूर्य की रोशनी मिल सके पौधे को ज्यादा घना न होने दें। इस प्रकार बेल वाली सब्जियों में 3जी कटिंग की विधि अपना कर किसान अधिक उपज प्राप्त कर सकते हैं।
डॉ० राजेंद्र कुकसाल