उत्तराखण्ड में ग्राम पंचायतों का वर्तमान परिदृश्य

उत्तराखण्ड की ग्राम पंचायतों में सुशासन व पंचायत प्रतिनिधियों की वर्तमान स्थिति एवं ग्राम पंचायत में सुशासन को सुद्रण करने व ग्राम पंचायत प्रतिनिधियों को सक्षम बनाने सम्बंधी आलेख

आज जहाँ पूरे देश में अलग-अलग मुद्दों को लेकर त्वरित प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। लोग सरकार की नीतियों का विश्लेषण किये बिना विरोध करने में आमादा हैं, वही कुछ मूलभूत मुद्दे ऐसे भी हैं जिनमें अनिवार्य रूप में चर्चा होनी चाहिए थी। लेकिन ऐसे मुद्दे कही न कही आज दब कर रह गये हैं। गाहे बगाहे कोई इन पर चर्चा भी करता है तो उसकी आवाज इतनी धीमी होती है कि कतार में खड़े तीसरे व्यक्ति को तक नहीं सुनाई देती। लेकिन बगल में खड़ा दूसरा आदमी जिसने उस तथाकथित आवाज को सुना, वह भी उसे आगे बड़ाने का कष्ट नहीं उठाना चाहता है।

ऐसा ही एक प्रमुख मुद्दा उत्तराखण्ड में नव निवार्चित ग्राम पंचायतों के सुद्रणिकरण एवं ग्राम पंचायतों में सुशासन स्थापना करने के प्रति सरकार व प्रशासनिक अमलों का उदासीन रवया अपनाना है। ज्ञात हो कि विगत् अक्टूबर- नवम्बर 2019 में उत्तराखण्ड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव संपन्न हुये। इस बार के पंचायत चुनाव राज्य निर्माण के बाद हुये पंचायत चुनावों में से सबसे खास थे। उत्तराखण्ड सरकार द्वारा लागू किये गये उत्तराखण्ड पंचायती राज ऐक्ट 2016 के बाद 2019 में इस ऐक्ट में कुछ संसोधन किये गये थे, जिसमें सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों के लिए न्यूनतम 10वीं कक्षा उत्तीर्ण होना तथा अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जन जातियों व महिला उम्मीदवारों को न्यूनतम कक्षा 8वीं उत्तीर्ण होना अनिवार्य किया गया था। इसके अतिरिक्त केवल दो बच्चों वाले इच्छुक उम्मीदवारों को ही चुनाव लड़ने के लिए योग्य माना गया था।

उत्तराखण्ड में ग्राम पंचायतों का वर्तमान परिदृश्य

सरकार के केवल दो बच्चों वालों को ही चुनाव लड़ने के लिए योग्य मानने वाले फैसले के खिलाफ कुछ ग्राम प्रधान संगठनों ने सरकार के इस फैसले के खिलाफ कोर्ट का दरवाजा तक खटखटा डाला। अंततः कोर्ट ने ग्राम पंचायत पदों पर सरकार के इस फैसले को गलत बताते हुये ग्राम प्रधान संगठनों के पक्ष में फैसला सुनाया लेकिन त्रिस्तरीय पंचायतों के शेष दो स्तरों क्षेत्र पंचायत तथा जिला पंयायत में सरकार के फैसले को बर्करार रखा। आखिरकार काफी खीचा-तानी के बाद चुनाव सम्पन्न हो गये।

संशोधित पंचायती राज ऐक्ट 2019 ने जहाँ एक ओर शिक्षित व पढ़े लिखे युवाओं को पंचायतों में प्रतिनिधित्व के अवसर प्रदान किये, वहीं दूसरी ओर इन युवाओं का ग्रामीण व सामाजिक विकास के क्षेत्र में नया होना व तजुर्बे की कमी राज्य के ग्रामीण विकास को गति प्रदान करने की ओर एक चुनौती प्रतीत होती नजर आ रही है। बेसक यह युवा प्रतिनिधि किताबी ज्ञान से लबरेज हो लेकिन एक गाँव के विकास की ओर किस प्रकार कार्य किये जाय या किस प्रकार ग्रामीण हित में सार्वजनिक निर्णय लिये जायें इस बात का इन युवा जन प्रतिनिधियों को जरा भी ज्ञान नहीं है।

युवाओं को पंचायत स्तर पर प्रतिनिधित्व देना दूरगामी रूप में लाभप्रद हो सकता है, किन्तु इसके लिए उन्हे क्षमतावान बनाने की ओर सरकार की तैयारियां एवं प्रयास किसी भी स्तर पर दिखाई नहीं दे रहे हैं। जबकि इसकी इन युवा जन प्रतिनिधियों को सबसे अधिक आवश्यकता है। इस बात पर इस लिए जोर दिया जा रहा है कि, चुनावों के बाद जनवरी 2020 में उत्तराखण्ड भर के गाँवों में आयोजित ग्राम पंचायत की आम बैंठकों में विकास खण्ड स्तर के ग्राम पंचायत विकास अधिकारियों तथा ।क्व् पंचायत के अतिरिक्त किसी भी अन्य विभाग के अधिकारीयों तथा कर्मचारियों द्वारा प्रतिभाग नहीं किया गया। क्या यह गंभीर विषय नहीं है?

ग्राम पंचायतों को ग्रामीण विकास की एक महत्वपूर्णं इकाई माना गया है। यहाँ तक कि गाँधी जी भी ग्राम पंचायतों के सशक्तिकरण को भारत के विकास के लिए महत्वपूर्ण मानते थे। लेकिन उत्तराखण्ड में इसी महत्वपूर्ण इकाई की बैठक में ग्रामीण विकास से जुड़े विभागों के अधिकारियों व कर्मकारियों की अनुपस्थिति उत्तराखण्ड के गाँवों के विकास के लिए विल्कुल भी अच्छा संकेत नहीं माना जा सकता।

इसके उलट होना तो यह चाहिए था कि ग्राम पंचायतों की खुली बैठकों का एक रोस्टर तैयार कर जिला स्तर से ही विभिन्न विभागों को भेजा जाता तथा हर गाँव की खुली बैठक में प्रतिभाग करने के लिए विभागों द्वारा अपने अधिकारियों तथा कर्मचारियों की जिम्मेदारी तय की जाती। वह अधिकारी या कर्मचारी ग्राम पंचायत की खुली बैठक में सरकार द्वारा संचालित अपने विभाग की योजनाओं की जानकारी देता, सम्बंधित योजना का लाभ लेने की प्रक्रिया समझाता। इसके परिणाम स्वरूप ग्रामीणों का न केवल विभागों के प्रति विस्वास जागता, वरन सरकार की योजनाओं का बेहतर क्रियान्वयन भी होता।

जिला प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम का उल्लेख न करने की शर्त पर यह दावा किया था कि ग्राम पंचायतों की खुली बैठकों का रोस्टर जारी किया गया था तथा विभागों को इस सम्बन्ध में निर्देश भी जारी किये गये थे। किन्तु सम्बंधित विभागों के कर्मचारियों द्वारा उन निर्देशों का पालन नहीं किया गया। इसे ग्रामीण विकास से जुड़े विभागों की लापरवाही ही तो कहा जायेगा।

ग्राम पंचायत स्तर पर सुशासन की स्थापना पंचायत स्तर पर विकास कार्यों में ग्रामीणों की सहभागिता एवं विकास कार्यों में पारदर्शिता को सुनिश्चित करने का प्रमुख टूल माना जाता है। ग्राम पंचायतों के प्रस्ताव रजिस्टर, लेखा का रखरखाव, ग्राम पंचायत की उप समितियों के कार्यवाही रजिस्टर तैयार करना व उनमें कार्यवाही को अंकित करना, मनरेगा जॉब कार्डों की सूची, पुरानी पंचायत द्वारा हस्तांतरित दस्तावेजों का रख-रखाव, सामाजिक अंकेषण के प्रतिवेदन, ग्राम पंचायत की बैठकों का ऐजेण्डा तैयार करना तथा नियमित बैंठकों का आयोजन, ग्राम पंचायत के विकास कार्यों में वार्ड सदस्यों की भूमिका का निर्धारण आदि ग्राम पंचायतों में सुशासन स्थापित करने के लिए आवश्यक कार्य हैं। लेकिन कुछ एक ग्राम पंचायतों को छोड़कर लगभग 95 प्रतिशत ग्राम पंचायतें आज भी सुशासन के नाम पर एक बड़ा शून्य ही हैं।

इन मूलभूत प्रयासों के अभाव में ही सरकार के समस्त प्रयास उसकी मंशा के विपरीत परिणाम दिखा रहे हैं। खास तौर पर उत्तराखण्ड के ग्रामीण क्षेत्र में निवास करने वाला आम जन व युवा आपने गाँव में नहीं रहना चाहता, किसान अपनी कृषि भूमि को बारही प्रदेश के लोगों को कोठियां और होटल बनाने के लिए बेच रहा है, इससे सबसे अधिक पर्यारण को नुक्सान हो रहा है। गाँव के गाँव पलायन के कारण भूतिया हो गये हैं। जो लोग गाँव में रह गये हैं वह दिन प्रतिदिन नशे की लत से बर्बाद हो रहे हैं। आज किसान अपने बच्चों को किसान नहीं बनाना चाहता। सरकारी योजनाओं का प्रतिवर्ष हजारों करोड़ रूपया व्यय नहीं होने के कारण वापस हो जाता है। क्या इस दिशा में सरकार द्वारा ठोस नीति नहीं बनाई जानी चाहिए?

यदि सरकार वास्तव में उत्तराखण्ड के गाँवों में वास्तविक विकास करना चाहती है तो, उसे लोकतंत्र की इस सबसे छोटी और सबसे महत्वपूर्ण इकाई को सभांलने वाले युवा जन प्रतिनिधियों की क्षमता एवं सक्षमता को बढ़ाना होगा। ग्राम पंचायत में सुशासन स्थापित करने की ओर ठोस कदम उठाने होंगे। प्रशासनिक अधिकारियों, विभागीय अधिकारियों व कर्मचारियों को अपनी जिम्मेदारी को समझते हुये ग्राम पंचायत के साथ अधिक से अधिक समन्वय स्थापित कर सरकार की योजनाओं को वास्तिविक लाभार्थी तक पहुँचाने की दिशा में कार्य करना होगा।

इस दिशा में वरिष्ठ जन प्रतिनिधि, नीति निर्माता, सामाजिक संगठन, सामाजिक लेखक, पत्रकार, प्रबुद्ध प्रशासनिक अधिकारी, सामाजिक विशलेषक व युवा अपनी- अपनी ओर से पहल कर हमारे उत्तराखण्ड को एक आदर्श राज्य बनाने की ओर अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। क्योंकि समाजिक विकास सबसे पहले खुद से शुरू होता है, दूसरे के लिए न सही हम खुद के लिए तो कुछ प्रयास करें। अधिकारों की तो हम खूब वकालत करते हैं, साथ में थोड़ा कर्तव्यों को भी क्यों न याद रखा जाय?

आलेखः

पंकज सिंह बिष्ट

समाज कार्य विशेषज्ञ एवं ग्रामीण लेखक

चरखा फीचर

नैनीताल (उत्तराखण्ड)

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