आजादी के सही मायने

इस 15 अगस्त, 2023 को हम स्वतंत्रता दिवस की 77वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। यही कोई 200 साल की गुलामी के बाद 15 अगस्त, 1947 को ब्रिटिश औपनिवेशिक गुलामी से हम छूट सके। जिस आजादी पर हम इतराते हैं, खुशी मनाते हैं, मिठाईयां बांटते हैं। वह उन वीरों का हमें दिया हुआ तोहफा है, जिन्होंने भारत को आजादी दिलाने के लिए अपने प्राणों का तक बलिदान कर दिया था। ऐसे आजादी के नायकों, दीवानों और वीरों को सत्-सत् नमन् और देश के हर नागरिक को ढेरों शुभकामनायें और बधाई।

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सभी पाठकों को 77वे स्वतंत्रता दिवस की बधाई और शुभकामनायें।

किसी भी देश को सतत रूप से चलाने, अपनी आने वाली पीढ़ी के सामने एक मिसाल कायम करने और अपने पीछे ऐसे पदचिन्हों को उकेरने की जिम्मेदारी वर्तमान युवाओं के कंधों पर रहती है। वह अपने अग्रजों के उकेरे पदचिन्हों से मार्गदर्शन प्राप्त कर वर्तमान का संचालन करते हैं और अपनी आने वाली पीढ़ी को एक नया भारत बनाकर देते हैं। इस प्रकार यह प्रक्रिया सतत चलती रहती है, जिसे हमेशा चलते ही रहना चाहिए।

महाभारत के रण में श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गये गीतोपदेश में कर्म करने पर बल दिया गया है। उसी गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन को अपने कर्तब्यों को पूर्ण ईमानदारी से निर्वहन करने का उपदेश भी देते हैं। हजारों वर्ष पूर्व दिए गये इन उपदेशों की प्रासंगिकता आज भी यथावत् बनी हुई है। आजादी के बाद के इन वर्षों में भारत और भारतीय दोनों ही तेजी से बदले हैं। यह बदलाव सकारात्मक दिशा में हुए या नकारात्कम दिशा में, इसका मूल्यांकल बदलाव को देखने वाले के नजरिये पर निर्भर करता है। हम इन बदलावों को देखने के कितने नजरिये स्वयं में विकसित कर पाते हैं यह हम पर निर्भर करता है।

अच्छा-बुरा, सही-गलत, दिन-रात, अमीरी-गरीबी, सुख-दुख यह सब एक ही सिक्के के दो पहलुओं की तरह हैं। यह सभी एक दूसरे की अनुपस्थिति में अर्थ हीन हैं। समाज में दोनों की ही उपस्थिति मनुष्य को अपने प्रयासों को दिशा देने की प्रेरणा देती है। लेकिन उक्त उदाहरणों में से हर एक में संतुलन बनाये रखना आवश्यक होता है। हमें भूख लगती है तभी हम अपने और अपने परिवार के लिए रोटी का बंदोबस्त करते हैं। जरा कल्पना कीजिए कि मनुष्य को भूख लगना ही बंद हो जाये तो क्या वह मेहनत करना चाहेगा?

जिन्होंने गुलामी की दुश्वारियों और अत्याचारों को झेला और उसे महसूस किया, उन्हें आजादी के मायने भी पता थे। लेकिन जिन्हें आजादी थाली में परोसकर मिली उन्हें इसकी कद्र नहीं है।

वर्तमान भारत में अंग्रेजों की गुलामी से तो हम आजाद हैं, लेकिन हम दिन प्रतिदिन एक नई प्रकार की गुलामी की जंजीरों में जकड़ते जा रहे हैं। गुलामी आज भी है लेकिन उसका स्वरूप बदल गया है। आज हम मानसिक गुलामी की ओर बढ़ रहे हैं। सोसियल मीडिया में प्रसारित एक छोटा का आधारहीन संदेश हमारी सामाजिक अशान्ति का कारण बन जाता है। हम आज भी धर्म और सांप्रदायिकता के नाम पर एक दूसरे की जान लेने को उतारू हो जाते हैं। हम गुलाम बन रहे हैं नशे के, हम गुलाम बन रहे हैं फैसन के, हम गुलाम बन रहे हैं जंकफूड के, हम गुलाम बन रहे हैं बाजारों के, हम गुलाम बन रहे हैं मोबाइल के। इसका अर्थ तो यही है कि हमारी पूरी मावन सभ्यता किसी गुलामी नामक किसी अदृश्य चीज के चारों ओर घूम रही है, जिसके अभाव में शायद तरक्की के कोई मायने ही नहीं रहे हों जैसे।

असली आजादी का अर्थ तो यह है कि हम अपनी चेतना का प्रयोग अपनी इच्छा से कर सकें। अपने समय के मूल्य को समझें और उसका अभीष्ट सदुपयोग करें। हमारी मनःस्थिति को हम स्वयं नियंत्रित करें। हम किसी अन्य व्यक्ति, राजनीतिक पार्टी या कम्पनी द्वारा संचालित किसी खास प्रकार के अभियान के प्रभाव में न आ सकें, जो हमें प्रभावित कर अपने हित सिद्धि के लिए उपयोग करना चाहते हैं। अपने जीवन के हर निर्णय को हम बिना किसी पक्षपात के ले सकें। आजादी के सही मायने मेरी नजर में तो यही हैं।

भारत को लोकतांत्रिक मूल्यों के पथ पर ले जाने के लिए हमारे संविधान निर्माताओं ने देश को एक विस्तृत और लिखित संविधान दिया। नागरिक स्वतंत्र रहकर अपना समेकित विकास कर सकें, इसके लिए संविधान प्रत्येक नागरिक को 6 मौलिक अधिकार प्रदान करता है। वहीं नागरिक अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुये राष्ट्र के विकास में भी योगदान दें, इस अपेक्षा के साथ नागरिकों के लिए संविधान में 11 मौलिक कर्तव्यों को भी जोड़ा गया है। यही मौलिक अधिकार और मौलिक कर्तव्य, हमें आजादी और गुलामी के बीच का अंतर समझने में सहायता प्रदान करते हैं।

सही अर्थों में किसी के मौलिक अधिकारों में अतिक्रमण करना और उनका हनन करना ही गुलामी है और अपने मौलिक कर्तव्यों का पालन करते हुये अपने अधिकारों का प्रयोग करने की स्वतंत्रता ही आजादी है। इसलिए मौलिक अधिकार और मौलिक कर्तव्यों को अपने जीवन में समान महत्व देने वाले नागरिक ही सही मायनों में देश भक्त कहे जा सकते हैं।

हम अपने जीवन में आजादी के सही महत्व को समझें, अपने अधिकारों को प्राप्त करने के साथ ही अपने कर्तव्यों का भी निर्वहन करें, हर अभाव ग्रस्त व्यक्ति को कम से कम अपने स्तर तक उठाने का प्रयास करें, बच्चों में लड़का- लड़की का भेद न करते हुये उन्हें स्वयं को विकसित करने के समान अवसर प्रदान करें, समाज में स्त्रियों का सम्मान करें, जितना सम्भव हो सके दूसरे को सही राह दिखायें, अपने धर्म में आस्था के साथ ही दूसरे धर्मों का भी सम्मान करें, तो हम सही मायनों में उन शहीदों की दी गयी इस सौगात इस स्वतंत्रता (आजादी) को बनायें रख सकते हैं। सभी पाठकों को 77वे स्वतंत्रता दिवस की बधाई और शुभकामनायें।

पंकज सिंह बिष्ट, सम्पादक

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