सेब की सघन बागवानी करना चाहते हैं तो पहले यह जरूर जान लें | Would like to grow High density Apples, Know this first
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दोस्तों नमस्कार,
आज भारत तेजी से बदलता हुआ एक कृषि प्रधान देश है। यह हमारे किसानों की ही देन है, कि हम दुनियाँ की दूसरी बड़ी आवादी होने के बाद भी अपने नागरिकों की खाद्य जरूरतों को पूरा कर पा रहे हैं। लेकिन इसके बाद भी भारत की एक बड़ी जनसंख्या को कई रोज भूखा ही सोना पड़ता है।
हमारा देश कृषि क्षेत्र में निरंतर हो रहे बदलाव से गुजर रहा है, और कहीं न कहीं कृषि उत्पादन को बढ़ाने की ओर प्रयास किये जा रहे हैं। इसके लिए दुनियाँ भर में विकसित कृषि तकनीकों को अपनाया जा रहा है। ताकि कम कृषि भूमि से अधिक उत्पादन लिया जा सके।
भारत के पर्वतीय राज्यों उत्तराखण्ड, हिमांचल तथा कश्मीर आदि सेब उत्पादन करने वाले प्रमुख राज्य हैं। यहाँ सेब उत्पादन अंग्रेजों के समय से होता आ रहा है। लेकिन पिछले कुछ दशकों से यहाँ होने वाला सेब उत्पादन तेजी से कम हो रहा है।
तपमान में तेजी से हो रहा बदलाव, ग्लोबल वार्मिंग तथा मौसम परिवर्तन जैसे कुछ प्रमुख कारणों की वजह से यह उत्पादन कम हो रहा है। सेब के बगीचे तेजी से सिमट रहे हैं। जिन स्थानों में अभी भी सेब के बाग हैं, उनमें विभिन्न प्रकार की रोग व्याधियां देखने को मिल रही हैं।
वही दूसरी ओर पारम्परिक सेब के बगीचों को नई तकनीक जिसे ‘‘सेब की सघन बागवानी’’ के नाम से जाना जाता है, को बागवान तेजी से अपना रहे हैं। लेकिन इस तकनीक को अपनाना कितना सही, सुरक्षित और लाभकर है? इस विषय पर उपलब्ध जानकारी सेब उत्पादकों को कही न कही भ्रमित कर देती है। जिससे उन्हें आर्थिक नुकसान के साथ ही समय का भी नुकसान झेलना पड़ता है।
यदि आप भी सेब उत्पादक हैं या सेब उत्पादक बनने की सोच रहे हैं, और ‘‘सेब की सघन बागवानी’’ को अपनाने का विचार बना रहे हैं तो पहले डॉ. नारायण सिंह बागवानी विशेषज्ञ TERI – The Energy and Resources Institute द्वारा लिखे गये इस आलेख को जरूर पढ़ लीजिए।
यह आलेख आपको जानकारी के अभाव में होने वाले हर प्रकार के नुकसान से बचा सकता है।
सेब की सघन बागवानी क्या है?
पारम्परिक सेब के बागीचे को लगाने में सेब के पेड़ों को काफी दूरी में लगाया जाता है। यह इस लिए किया जाता है क्योंकि पेड़ जैसे- जैसे बड़े होते हैं, वह काफी फैलाव लेने लगते हैं। इसके साथ ही पेड़ों की जड़ें भी इसी अनुपात में फैलती हैं। पेड़ का फैलाव अधिक भूमि में होता है।
वही ‘‘सेब की सघन बागवानी’’ में पेड़ से पेड़ की दूरी बमुश्किल कुछ फीट होती है। इस तकनीक में रूट स्टॉक वाले पौंधों का प्रयोग किया जाता है। जिसके कारण जड़ों का फैलाव कम होता है और इसमें मूसला जड़ तो होती ही नहीं।
पारम्परिक बगीचे में जितनी भूमि में 1 सेब का पेड़ लगाया जाता है वही सघन बागवानी में 10 पेड़ लगते हैं। यहाँ यह जानना भी जरूरी है कि पारम्परिक बागीचों में लगने वाली सेब की प्रजातियों के बजाय ‘‘सेब की सघन बागवानी’’ में लगाई जाने वाली प्रजातियाँ विल्कुल भिन्न होती हैं। इसी कारण ‘‘सेब की सघन बागवानी’’ में उत्पादन कई गुना अधिक होता है।
‘‘सेब की सघन बागवानी’’ में अलग-अलग तापमान और भौगोलिक स्थिति के अनुसार सही प्रजातियों का चयन एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया होती है। जिसे नजर अंदाज करना किसानों को भारी पड़ता है।
सेब की सघन बागवानी ही क्यों करें?
पारम्परिक सेब की बागवानी के मुकाबले सेब की सघन बागवानी के निम्न फायदे हैं। जिससे किसानों अथवा बागवानों को अधिक आर्थिक लाभ मिल सकता है-
- कम क्षेत्रफल में अधिक पेड़ लगाये जाते हैं, जिससे अधिक उत्पादन प्राप्त होता है।
- सेब की सघन बागवानी में लगाये जाने वाले पेड़ पारम्परिक प्रजातियों के मुकाबले बहुत कम समय में उत्पादन देती है।
- उत्पादन लागत में व्यय होने वाला खर्च कम लगता है।
- सघन बागवानी में बगीचे का प्रबंधन करना आसान होता है।
- बौनी तथा अर्ध बौनी प्रजातियां लगभग 3 वर्ष में पैदावार देने लगती है।
- बौनी तथा अर्ध बौनी प्रजातियां होने के कारण रख रखाव तथा फल तुड़ाई में आसान।
- समान आकार का फल एवं समान रंग के कारण बाजार के अनुकूल।
सेब की सघन बागवानी में रूट स्टॉक क्या है?
अगर आप सेब की सघन बागवानी करने जा रहे हैं, तो आपको रूट स्टॉक को ठीक से समझना होगा। किसानों को इस विषय की जानकारी नहीं होने के कारण कई बार पेड़ों की अनावश्यक कीमत चुकानी पड़ती है।
सेब का गुणवत्तापूर्ण फल उत्पादन करने हेतु सर्व प्रथम यूनाईटेट किंगडम के ईस्ट मालिंग रिसर्च सेंटर में एम.एम. और एमला सिरीज के रूट स्टॉक बनाये गये थे। आज पूरी दुनियाँ में लगने वाले सेब की सघन बागीचों की स्थापना में इन्हीं सिरीज के रूट स्टॉक का प्रयोग किया जाता है।
यूनाईटेट किंगडम के ईस्ट मालिंग रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिक मार्टिन को रूट स्टॉक के जनक के रूप में जाना जाता है।
रूट स्टॉक कितने प्रकार के होते हैं?
रूट स्टॉक दो प्रकार के होते हैं। जिन्हें टिश्यू कल्चर आधारित रूट स्टॉक एवं क्लोनल रूट स्टॉक कहा जाता है। इसके उलट पारम्परिक तकनीक में सीडलिंग या बीजू पौधा सामान्य रूप से बीज से तैयार किये जाते हैं।
क्लोनल रूट स्टॉक जड़ों द्वारा तैयार किया जाता है। जिससे तीन प्रकार के पौधे तैयार किये जाते हैं- 1. डवार्फ Dwarf (बौने), 2. सेमी डवार्फ Semi Dwarf (अर्ध बौना) तथा 3. बिगरस या बड़े।
क्लोनल रूट स्टॉक मुख्यतः बेजीटेटिव रूप से तैयार किये जाते हैं। जिसमें माउँट लेयरिंग एवं ट्रेन्ट लेयरिंग विधि का प्रयोग किया जाता है।
टिश्यू कल्चर से सेब के पौंधो को उत्पादन कैसे किया जाता है?
टिश्यू कल्चर से सेब के पांधे बनाने के लिए प्रयोगशालाओं में मादा पौधे के एक छोटे से भाग से हजारों पौंधे बनायें जाते हैं। इन पौंधों को एक प्रकार के मिट्टी रहित मीडिया में तैयार किया जाता है, जिसमें सभी प्रकार के जरूरी पोषक तत्वों को मिलाया जाता है। यही पोषक तत्व पौंधे को तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
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सेब के क्लोनल रूट स्टॉक की बेहतरीन किस्में या प्रजातियां कौन सी हैं?
सेब के क्लोनल रूट स्टॉक की बेहतरीन प्रमुख किस्में या प्रजातियां निम्न प्रकार से हैं-
M 9ः क्लोनल रूट स्टॉक दुनियाँ की सबसे अधिक प्रचलित एवं सबसे अधिक उत्पादन देने वाली प्रजाति है। इस रूट स्टॉक से तैयार पौधे की अधिकतम ऊँचाई 12 से 13 फीट तक होती है। यह प्रजाति उच्च घनत्व तथा हाई डेनसिटी बागवानी के लिए सबसे ज्यादा उपयुक्त मानी जाती है।
यह प्रजाति सेब में लगने वाले फाइटोपथेरा बीमारी के प्रति प्रतिरोधक है। इस रूट स्टॉक पर सेब की गाला फूजी व रेड डिलिसियस की सेमी विगरस किस्में तैयार की जा सकती हैं।
M 26ः यह रूट स्टॉक M 9 की अपेक्षा थोड़ा बड़ा होता है। आकार की दृष्टि से यह सीडलिंग का लगभग 40 से 45 प्रतिशत होता है। इस किस्म के रूट स्टॉक पर सेब की किस्म के अनुसार डवार्फ Dwarf (बौने) या सेमी डवार्फ Semi Dwarf (अर्ध बौना) पौधा तैयार किया जाता है।
इसे कम नमी वाले स्थानों में लगाया जाना चाहिए और इसे सहारे की आवश्कता भी कम होती है।
M 27ः सेब की यह रूट स्टॉक सबसे बौनी प्रजाति है। इस रूट स्टॉक से तैयार पौधे की अधिकतम ऊँचाई 5 से 6 फीट तक होती है। पौधे को खड़ा रहने के लिए सहारे की आवश्कता होती है। इस प्रजाति के पौधे को गमलों में भी लगाया जा सकता है।
M 106ः इस किस्म की रूट स्टॉक M 26 की अपेक्षा थोड़ा बड़ा होता है। यह आकार की दृष्टि से सीडलिंग का लगभग 50 से 60 प्रतिशत होता है। इसमें सेब की सेमी डवार्फ Semi Dwarf (अर्ध बौना) किस्म का पौधा तैयार किया जाता है। इसे पौधे को सहारे की आवश्कता नहीं होती है।
M 111ः इस किस्म की रूट स्टॉक M 106 की अपेक्षा और थोड़ा बड़ा होता है। आकार की दृष्टि से यह सीडलिंग का लगभग 80 से 85 प्रतिशत होता है। यह रूट रूटॉक सेब की रेंड डिलिसियस किस्म के पौध बनाने के लिए सबसे अधिक उपयोग की जाती है।
इस किस्म की रूट स्टॉक से तैयार पौधे को हर प्रकार की मिट्टी में लगाया जा सकता है।
सेब के जिनेवा रूट स्टॉक की बेहतरीन किस्में या प्रजातियां कौन सी हैं?
सेब के जिनेवा रूट स्टॉक की बेहतरीन प्रमुख किस्में या प्रजातियां निम्न प्रकार से हैं-
जिनेवा 16ः इस किस्म की रूट स्टॉक M 9 से मिलता जुलता होता है। इस किस्म की रूट स्टॉक से तैयार पौधा अधिक पौदावार देता है और सेब में लगने वाले फायर ब्लाइट से लड़ने की क्षमता रखता है।
जिनेवा 41ः इस किस्म की रूट स्टॉक M 9 से मिलता जुलता होता है। इस किस्म की रूट स्टॉक से तैयार पौधा अच्छी पौदावार देता है और सेब में लगने वाले फायर ब्लाइट से लड़ने की क्षमता रखता है।
जिनेवा 202ः इस किस्म की रूट स्टॉक से तैयार पौधा छोटे आकार का होता है। इस किस्म की रूट स्टॉक M 26 से थोड़ा बड़ा होता है। इस किस्म की रूट स्टॉक से तैयार पौधा वूलि एफिड, कालर राट, क्राउनगाला, रूटराट जैसे रोगों के लिए प्रतिरोधी होता है।
जिनेवा 210ः इस किस्म की रूट स्टॉक का आकार M 7 और M 106 की तरह होता है। इस किस्म की रूट स्टॉक से तैयार पौधा अधिक पौदावार देता है और सेब में लगने वाले अधिकतर रोगों से लड़ने की क्षमता रखता है।
तो दोस्तों यदि आप भी सेब की सघन बागवानी में इस जानकारी को ध्यान में रखकर कार्य करते हैं, तो सही मायनों में आप सेब की सघन बागवानी से अच्छा उत्पादन तथा अच्छी आय अर्जित कर सकते हैं। इसके साथ ही जानकारी के अभाव में होने वाले नुकसानों से भी खुद को बचा सकते हैं।
तो दोस्तों आपको “सेब की सघन बागवानी “ के बारे में दी गई यह जानकारी कैसी लगी हमें जरूर बताईये।
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आलेख:
बहुत शानदार और रोचक जानकारी दी गई है डॉ नारायण सिंह जी का बहुत-बहुत शुक्रिया आशा करते हैं कि और नई तकनीकी ज्ञान हमें देंगे बहुत शुक्रिया और आभार