कोविड-19 महामारी के बाद भारत | India after the Covid-19 epidemic
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वैश्विक महामारी कोविड-19 ने जहां एक ओर मानव जाति को अपने आगोश में लेने का प्रयास किया है, वहीं इसने वैश्विक स्तर पर अर्थतंत्र और सामाजिक भावनाओं पर भी कुठाराघात किया है। मानव जाति पर इसका न केवल दीर्घकालिक असर होगा बल्कि, यह समाज के प्रत्येक वर्ग पर अपनी अप्रतिम छाप छोड़ेगा। कोरोना वायरस से उपजी यह महामारी विश्व के 6 महाद्वीपों पर अपना असर छोड़ चुकी है।
कोविड-19 के दौर में देखा जाए तो इसने न केवल लोगों की जीवनशैली को बदल दिया है बल्कि उनकी आर्थिक स्थिति पर भी गहरा असर डाला है। धनाढ्य वर्ग हो अथवा मजदूर वर्ग सभी कमोबेश कोविड-19 के दुष्प्रभावों का शिकार हुए हैं। केवल यह कहने से शब्दों की इतिश्री नहीं हो जाती कि कोविड-19 के कारण लोग अपना सर्वस्व गवां चुके हैं।
भविष्य की झलक के साथ कोविड-19 के कारण कुछ क्रांतिकारी बदलाव देखने को मिल रहे हैं। यह सही है कि लाखों लोग प्रवासी के रूप में अपने राज्य, गृह जनपद अथवा गांव की तरफ रुख कर चुके हैं परंतु इसने हजारों संभावनाओं के द्वार भी खोल दिए हैं।
देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ही शब्दों में ‘वोकल फॉर लोकल’ की बात चल निकली है। इस विचारधारा को लोगों ने अपने जीवन में उतारने का प्रयास किया है। अर्थव्यवस्था के सुधार व सामाजिक जीवन की गतिविधियों की ओर एक नया कदम बढ़ा दिया है। यह एक स्वागत योग्य कदम है।
जहाँ एक ओर हमें कोरोना के खिलाफ जंग को पूरी सावधानी और सतर्क होकर लड़ना है, वहीँ दूसरी ओर कठोर मेहनत से व्यवसाय, नौकरी, पढ़ाई आदि जो भी कर्तव्य पथ पर हम आगे बढ़ रहे हैं उसमें गति लानी है। उसको भी नई ऊँचाई पर ले जाना है।
कोरोना काल में तो हमारे ग्रामीण क्षेत्रों ने पूरे देश को दिशा दिखाई है। ग्रामीण अंचल से स्थानीय नागरिकों तथा ग्राम पंचायतों के अनेक बेहतरीन प्रयास लगातार सामने आ रहे हैं। मनुष्य के सकारात्मक दृष्टिकोण ने हमेशा आपदा को अवसर में, विपत्ति को विकास में बदलने में बहुत मदद मिलती है। अभी हम कोरोना के समय भी देख रहे हैं कि, कैसे हमारे देश के युवाओं-महिलाओं ने अपनी प्रतिभा और कौशल के दम पर कई नये प्रयोग शुरू किये हैं।
बाजार में मधुबनी पेंटिंग से सुसज्जित मास्क एक नया प्रयोग:
बिहार में कई महिला स्वयं सहायता समूह ने मधुबनी पेंटिंग से सुसज्जित मास्क बनाना शुरू किया है, और देखते ही देखते ये मास्क खूब लोकप्रिय हो गये हैं। मधुबनी कला से तैयार मास्क एक तरह से अपनी लोक परम्परा का प्रचार तो करते ही हैं, साथ ही लोगों को स्वास्थ्य के अतिरक्त रोजगार भी दे रहे हैं।
पूर्वोत्तर भारत में बाँस कितनी बड़ी मात्रा में होता है। अब इसी बाँस से त्रिपुरा, मणिपुर, असम के कारीगरों ने उच्च गुणवत्ता वाली पानी की बोतल और टिफिन बॉक्स बनाना शुरू किया है। ये बोतलें और टिफिन बॉक्स ईको फ्रेंडली भी हैं।
स्थानीय रूप से तैयार छोटे-छोटे उत्पादों से किस तरह सफलता के नए आयाम तय करते हैं इसका अक्स झारखंड में देखने को मिलता है। पूर्वांचल के अंतर्गत झारखंड के बिशुनपुर में इन दिनों विभिन्न समूह मिलकर नींबू घास (लेमन ग्रास) की खेती कर रहे हैं। लैमन ग्रास का तेल बाज़ार में अच्छे दामों में बिकता है। जिसकी मदद से कास्तकार लाभ कमा रहे हैं, यही तो आत्मनिर्भरता है। भारत का हैण्डलूम और हस्तशिल्प कितना समृद्ध है, इसमें कितनी विविधता है, दुनिया ये बात जितना ज्यादा जानेगी, उतना ही हमारे स्थानीय कारीगरों और बुनकरों को लाभ होगा।
खेल-कूद के क्षेत्र में सफलता की नई इबारत लिखी जा रही है:
एक समय था जब खेल-कूद से लेकर अन्य क्षेत्र में अधिकतर लोग या तो बड़े-बड़े शहरों से होते थे या बड़े-बड़े परिवार से। या फिर नामचीन स्कूल या कॉलेज से होते थे अब देश बदल रहा है। गांवों और छोटे शहरों तथा सामान्य परिवारों से युवा आगे आ रहे हैं। सफलता की नई इबारत लिखी जा रही है। ये लोग विभिन्न तरह के संकटों के बीच भी नए-नए सपने संजोते हुए आगे बढ़ रहे हैं।
भारत का इतिहास भी आपदाओं और चुनौतियों पर जीत हासिल कर और ज्यादा निखरकर आगे बढने का रहा है। सैकड़ों वर्षों तक अलग- अलग आक्रांताओं ने भारतभूमि पर हमला किया, इसे नष्ट करने का प्रयास किया। उनको लगता था कि भारत की सभ्यता ही नष्ट हो जाएगी, भारत की संस्कृति ही विलुप्त हो जाएगी। लेकिन इन झंझावातों से भारत और भी निखर कर सामने आया। इसी बात से यह भरोसा हो जाता है कि भारतवर्ष कोरोना संक्रमण के समय भी ‘संकट को अवसर’ में बदलकर विश्व के सामने एक नया आयाम प्रस्तुत करेगा।
यदि कोरोना संक्रमण के बाद हमें भारत को विश्व मानचित्र में एक नए परिदृश्य में लाकर खड़ा करना है, तो उसके लिए आवश्यक है कि जनमानस का अधिकाधिक सहयोग लिया जाए। क्योंकि कोई भी मिशन जन-भागीदारी के बिना पूरा व सफल नहीं हो सकता। इसीलिए भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक नागरिक के रूप में हम सबका संकल्प, समर्पण और सहयोग बहुत जरूरी है।
हमारी परंपरा में कहा जाता है कि-
स्वभावं न जहाति एव, साधु: आपद्रतोपी सन।
कर्पूर: पावक स्पृष्ट:, सौरभं लभतेतराम।।
अर्थात, जैसे कपूर आग में तपने पर भी अपनी सुगंध नहीं छोड़ता, वैसे ही अच्छे लोग आपदा में भी अपने गुण, अपना स्वभाव नहीं छोड़ते |
आज, हमारे देश की जो श्रमशक्ति है वो भी इसका जीता जागता उदाहरण हैं। कोरोना संक्रमण के चलते घर वापस आए प्रवासी भारतीयों या नागरिकों ने विभिन्न देशों अथवा राज्यों से अपने क्षेत्र विशेषतः गांवों की ओर रुख किया है। ऐसे कुशल श्रमिकों व पेशेवरों के द्वारा नवाचारी प्रयोग करते हुए कृषि प्रणाली, उनसे जुड़े विभिन्न प्रकार के औजार, सैनिटाइजर मशीन आदि बनाकर नया प्रयोग प्रारंभ किया है।
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दुनियाँ में भारतीय के स्थानीय व जैविक मसालों की मांग बड़ी है:
लंदन से छपने वाले प्रसिद्द समाचार पत्र फाइनेंशियल टाइम्स के एक लेख के अनुसार कोरोना के संक्रमण काल में हल्दी और अदरक सहित अन्य भारतीय मसालों की मांग एशिया के अलावा अमेरिका भी खूब बढ़ गई है। सारी दुनिया का ध्यान इस समय अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने पर है। इन रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली इन औषधियों का संबंध हमारे देश से है । इस खासियत को समझते हुए युवा प्रवासियों के द्वारा इस क्षेत्र में नए स्टार्टअप प्रारंभ किए गए हैं।
कोरोना काल ने रिश्तों की अहमियत को समझाया है:
कोरोना जैसा संकट नहीं आया होता तो शायद जीवन क्या है! जीवन क्यों है! जीवन कैसा है! हमें शायद ये याद ही नहीं आता। कई लोग विभिन्न कारणों से मानसिक तनाव में जीते रहे हैं। उनके जीवन में यह पल निश्चित रूप से खुशियों को लौटा कर लाए हैं। उन्होंने लॉक डाउन की अवधि में खुशियों के छोटे-छोटे पहलूओं को पुनर्जीवित किया है। परिवार के समस्त सदस्य मिलजुलकर आपसी सामंजस्य के साथ रह रहे हैं। दशकों के बाद तीन पीढ़ियां एक साथ घुलमिल कर पारिवारिक माहौल में रह रही हैं। यह लम्हे कोरोना काल के सकारात्मक पहलू नहीं तो और क्या हैं?
पर्यावरण व प्रकृति के लिए वरदान सावित हुआ कोरोना काल:
एक ऐसा सूक्ष्म जीव जिसे सार्स कोविड-2 नाम से भी जाना जाता है, ने दुनिया के करोड़ों लोगों को मास्क पहना दिया। सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने को मजबूर कर दिया। उसके प्रभाव के चलते दुनियां मानो थम सी गई है। केवल 4 महीने में प्रकृति में इतना परिवर्तन पहले कभी नहीं देखा था। यमुना के पानी में मछलियां दिखने लगी हैं, गंगा नदी का पानी पारदर्शी हो गया है, हवा साफ हो गई है।
विभिन्न पर्यावरण प्रेमियों तथा वैज्ञानिकों ने यह माना है कि कोरोना संक्रमण के चलते लॉकडाउन की अवधि में पर्यावरण को बहुत अधिक लाभ हुआ है। इससे न केवल प्रदूषण का स्तर गिरा है बल्कि प्राकृतिक जीवों, पशु-पक्षियों के स्वभाव में भी नया बदलाव देखने को मिल रहा है । अब वह ज्यादा स्वच्छंद रूप से विचरण कर रहे हैं।
लॉकडाउन के कारण ही सही जहाँ संभवतः पहली बार बरेली और सहारनपुर से हिमालय पर्वत की श्रृंखलाएं साफ-साफ देखी गई हैं तो दूसरी ओर पंजाब और चंडीगढ़ के क्षेत्र से भी हिमाचल प्रदेश में स्थित धौलाधार की पहाड़ियां नजर आई हैं।
हर क्षेत्र हो रहा है नवाचार:
मानव जाति के विकास में नवाचारों की गजब भूमिका रही है। जिसके कारण ही हम इस आधुनिक दौर में पहुंचे हैं। इसीलिए इस महामारी पर जीत के लिए हमारे विशेष नवाचारी प्रयोग ही मील का पत्थर साबित होंगे। शिक्षा के क्षेत्र में भी कोविड-19 महामारी के चलते विभिन्न नवाचारी प्रयोग हुए हैं। जहां एक ओर शिक्षक और छात्र ऑनलाइन क्लासेस के माध्यम से एक दूसरे से जुड़ रहे हैं, वहीं कई नए स्टार्ट अप इस दौरान चल निकले हैं। जिन्हें शायद ऐसे ही किसी मौके की तलाश थी।
‘योग’ व ‘आयुर्वेद’ से देश हो रहा है स्वस्थ और मजबूत:
कोरोना संक्रमण के समय लोग अपने स्वास्थ्य और रोग प्रतिरोधक क्षमता पर अधिक गंभीरता से विचार कर रहे हैं। इसी कारण लोगों का झुकाव योग की ओर हुआ है। ‘योग’ जिस प्रकार लोगों के जीवन से जुड़ रहा है, लोगों में अपने स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता भी बढ़ रही है। कोरोना महामारी के दौरान भी यह देखा जा रहा है कि ‘हॉलीवुड से हरिद्वार’ तक घर पर रहते हुए लोग ‘योग’ में बहुत गंभीरता से ध्यान दे रहे हैं।
हर जगह लोगों ने ‘योग’ और उसके साथ ही ‘आयुर्वेद’ के बारे में और ज्यादा समझना चाहा है, उसे अपनाना चाहा है। बहुत से लोग जिन्होंने कभी योग नहीं किया वे या तो ऑनलाइन योग क्लास से जुड़ गए हैं या फिर ऑनलाइन वीडियो के माध्यम से भी योग सीख रहे हैं। देखा जाय तो सही में ‘योग’ एक तरह से कम्यूनिटी, इम्यूनिटी और यूनिटी सबके लिए अच्छा सावित हुआ है।
घर की रसोई पर विश्वास बढ़ रहा है:
निःसंदेह कोविड-19 काल में लोगों ने अपनी शरीर की इम्युनिटी के बारे में सोचना शुरू किया है। जंक फूड के बिना हम जीवित रह सकते हैं। घर का बना हुआ खाना खाकर भी स्वस्थ रह सकते हैं, यह धारणा अब बलवती हो रही है। लोगों ने ‘अपनी रसोई पर विश्वास‘ करना शुरू किया है ।
देश आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है:
आत्मनिर्भर भारत पर आज देश में व्यापक मंथन शुरू हुआ है। लोगों ने अब इसे अपना अभियान बनाना शुरू किया है। इस मिशन को देशवासी अब ‘अपना मिशन’ समझ रहे हैं। आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाते भारत ने विदेशों से आयातित सामान, कच्चा माल विशेषकर चीन के सामान पर निर्भरता को कम किया है। लोग अब लोकल प्रोडक्ट्स (स्थानीय उत्पादों) पर विश्वास जता रहे हैं। वोकल फॉर लोकल को प्रोत्साहित कर रहे हैं। मेक इन इंडिया को बढ़ावा मिले, इसके लिए हर एक नागरिक अपना संकल्प जता रहा है।
केंद्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान सीएफटीआरआई मैसूर ने फूड प्रोसेसिंग पर कार्य करते हुए प्रोटीन की मात्रा से भरपूर ऐसे बिस्कुट बनाए हैं, जो एम्स (AIIMS) जैसे अस्पतालों में कोविड के मरीजों को रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने हेतु उपलब्ध कराये जा रहे हैं।
सीएसआईआर (CSIR) की भावनगर स्थित लैब में नैनो मटेरियल से बने मास्क बनने शुरू हो गए हैं। पहले दवाइयों का कच्चा माल भी चीन से आता था। लेकिन सीएसआईआर के विज्ञान समाचार और इंडिया साइंस वायर के अनुसार अब भारत में ही बड़ी संख्या में इस क्षेत्र में स्टार्टअप शुरू किए गए हैं।
भारत में ही तैयार होंगे बेहतरीन खिलौने:
ग्रेटर नोएडा में टॉयज सिटी बन रही है जो कि निश्चित रूप से चीन से आयातित खिलौनों का विकल्प बनकर उभरेगा। ‘कोरोनियल्स’ अर्थात कोरोना संक्रमण के बाद पैदा होने वाले बच्चे अब घर के आंगन में भारत में ही तैयार खिलौनों से खेल सकेंगे।
जिस तरह डार्विन अपनी आत्मकथा में लिखते हैं कि जीवन के हिस्से में खुशी गायब हो गई है, जीवन एक प्रकार से यांत्रिक हो गया है। ठीक इसी तरह कोरोना संक्रमण काल ने मानव जाति को इस बात को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि, वह अपने भीतर की ओर झांक कर देखे। जब वह प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करते हुए कार्य करेगा तो मनुष्य थोड़ा ज्यादा मनुष्य बन कर उभरेगा।
(यह आलेख हमें हल्द्वानी से श्री गौरी शंकर काण्डपाल जी ने भेजा है। आप एक अध्यापक हैं और सामाजिक लेखन में अपने स्वतंत्र विचार रखने पर विस्वास करते हैं।)
लेखक:
गौरी शंकर काण्डपाल
हल्द्वानी, जनपद नैनीताल (उत्तराखण्ड)
ईमेल: gaurida2017@gmail.com