प्रसव के बाद माँ व शिशु की देखभाल कैसे करनी चाहिए
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शिशु के जन्म के बाद की 42 दिन तक की अवधि में की जाने वाली देखभाल व जाँचों को ही प्रसव पश्चात् देखभाल कहते हैं। इस अवधि में माँ व बच्चे में संक्रमण की अधिक संभावना रहती है। महिला को गर्भावस्था से पूर्व की स्थिति में आने में समय लगता है। इस लिए इन 42 दिनों की अवधि में माँ व बच्चे को अधिक देखभाल की जरूरत होती है।
- प्रसूता महिला को सम्पूर्ण आराम व निन्द्रा अवश्य लेनी चाहिए।
- शारीरिक स्वच्छता के साथ ही जननांगों की स्वच्छता का भी विशेष ध्यान देना चाहिए।
- साफ कपड़े या सेनेट्री नैपकीन का प्रयोग करना चाहिए।
- पौष्टिक आहार जिसमें सभी दालें, हरी सब्जियां, दूध, फल, गुड़ शामिल हो लेना चाहिए।
- प्रसव के बाद जितना जल्दी हो सके बच्चे को स्तनपान करायें।
नवजात शिशु की देखभाल
- नवजात शिशु को ठण्ड से बचाने के लिए नर्म सूती कपड़े से केवल पोंछे। शिशु को 5 दिनों तक न नहलायें। इससे शिशु का ठण्ड से बचाव होता है।
- शिशु की नाभी को साफ व सूखा रखें। नाभी में किसी भी प्रकार का लेप आदि ना करें।
- शिशु को हमेशा गर्भ रखें।
नियमित स्तनपान करायें
- नवजात शिशु को जन्म के आधे घण्टे के अन्दर ही स्तनपान शुरू कराना चाहिए। इससे शिशु को माँ का पहला गाढ़ा दूध प्राप्त होता है, यह न केवल नवजात शिशु की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सहायक होता है। साथ ही माँ की प्लेसेन्टा (फली) निकने में भी मदद करता है।
- शिशु को हर दो घंटे में स्तनपान करायें।
- ध्यान रहें माँ हमेशा बैठकर ही स्तनपान करायें। लेटकर कभी भी स्तनपान न करायें ऐसा करने से दूध श्वास की नली में जा सकता है जो खतरनाक हो सकता है।
- हर छाँती से क्रमशः 5 मिनट तक बदल बदल कर दूध पिलायें।
प्रसव पश्चात् माँ की कौन सी जांचे की जाती हैं
- रक्तश्राव की जाँच
- बुखार की जाँच
- प्रसव मार्ग से बदबूदार श्राव की जाँच
- गर्भाशय की जाँच
- हाथ पैर व चेहरे में सूजन की जाँच
- माँ में बेहोशी व दौरों की जाँच
- स्तनपान में समस्या हेतु स्तनों की जाँच
- टाँकों की जाँच
- पेट में दर्द का होना या दुखना
उक्त जाँच में किसी भी प्रकार की असमान्यता व जटिलता के लक्षण दिखने पर तुरंन डॉक्टरी सहायता लेनी चाहिए। समय पर सही उपचार ना होने से माँ की जान को खतरा हो सकता है। प्रसव पश्चात् किसी प्रकार की जटिलता व खतरों से बचने हेतु प्रसव अस्पताल में ही कराना चाहिए।
प्रसव पश्चात् शिशु की कौन सी जांचे की जाती हैं
- वजन (कम से कम 2 किलो 500 ग्राम होना चाहिए)
- धड़कन (100 से 120 तक सामान्य)
- तपमान की जाँच
- सांस अथवा श्वसन (40 से 60 साँस प्रति मिनट तक सामान्य)
- शिशु के शरीर का रंग देखना (पीला,नीला,सफेद होने पर तुरंत डाक्टरी सहायता लें)
- शिशु में शरीरिक अपंगता की जाँच
- शिशु द्वारा मल मूत्र त्याग की जानकारी प्राप्त करना।
- शिशु के स्तनपान करने संबंधित जानकारी प्राप्त करना।
- शिशु की शारीरिक हलचल व प्रतिक्रिया की जाँच करना।
उक्त जाँच में किसी भी प्रकार की असमान्यता व जटिलता के लक्षण दिखने पर तुरंन डॉक्टरी सहायता लेनी चाहिए। समय पर सही उपचार ना होने से शिशु की जान को खतरा हो सकता है। प्रसव पश्चात् किसी प्रकार की जटिलता व खतरों से बचने हेतु प्रसव अस्पताल में ही कराना चाहिए।
माँ व शिशु की देखभाल के लिए आवश्यक सलाह
- शिशु को 6 माह तक केवल माँ का ही दूध पिलायें। माँ के दूध के अलावा घुट्टी अथवा पानी भी बच्चे को ना दें।
- अपने बच्चे को समय पर टीका लगवायें। इस सुविधा हेतु अपने गाँव की ANM दीदी से संपर्क करें।
- प्रसूता महिला को अपने खानपान का बिशेष ध्यान रखना चाहिए। खानपान में किसी भी प्रकार का परहेज नहीं करना चाहिए।
- माता व शिशु के रहने वाले कमरे की साफ-सफाई, तापमान व उचित रोशनी का खास खयाल रखें। प्रसव के बाद गोबर की मैंड़ नहीं लगानी चाहिए। इससे माता व शिशु को संक्रमण हो सकता है।
- शिशु को अधिक लोगों के संपर्क में नहीं लाना चाहिए। इससे शिशु को संक्रमण हो सकता है।
- प्रसूता को दो बच्चों में कम से कम 3 वर्ष का अन्तर रखने की सलाह दी जाती है। इस हेतु विभिन्न परिवार नियोजन के साधन अपनाये जा सकते हैं।
- प्रसूति के दौरान प्रसूता महिला को सम्भोग न करने की सलाह दी जाती है।
- प्रसव पश्चात् 7 जाँचे अवश्य करानी चाहिए। यह जाँचे निर्धारित समय में ANM दीदी, आशा कार्यकर्ता द्वारा की जा सकती है।
- अपने बच्चे की बृद्धि निगरानी हेतु प्रतिमाह बच्चे का वजन आंगनवाड़ी में आयोजित ग्रामीण स्वास्थ्य व पोषण दिवस में ले जाकर अवश्य करायें। साथ ही आंगनवाड़ी से मिलने वाला पोषाहार जरूर प्राप्त करें।
- प्रसूता महिला व शिशु की देखरेख हेतु समस्त परिवार के सदस्यों द्वारा भी प्रसूता महिला को सहयोग प्रदान किया जाना चाहिए।
किसी भी प्रकार की सहायता हेतु गाँव की आशा/ ANM व नजदीकी सरकारी स्वास्थ्य केन्द्र से संपर्क करें।
आलेख: baatpahaadki.com
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