जैविक खेती | कम लागत में अधिक कमाई करें

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दोस्तो नमस्कार!

ऐग्रीकल्चल, कल्चर और ऐजुकेशन के इस खूबसूरत सफर में, आज आपको हम जैविक खेती पर जानकारी देंगे। जैविक खेती को एक व्यवसाय के रूप में अपनाने वाले किसान दूसरे किसानों की अपेक्षा ज्यादा बेहतर आय प्राप्त कर रहे हैं।

अब आप भी जैविक खेती में कम लागत व अधिक कमाई के लिए इस आलेख में दी गयी जानकारी से लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

वर्तमान में जैविक उत्पादों की मांग की बात की जाय तो, कोरोना महामारी के बाद भारत में लोग अपने स्वास्थ्य और खान-पान के प्रति काफी जागरूक हो गये हैं। इसी अनुपात में जैविक उत्पादों की मांग भी कई गुना बड़ी है, तो आईयें जानते हैं आप जैविक खेती को अपना कर कैसे लाभ प्राप्त करें-

हरितक्रांति के बाद भारत में खाद्यान्न फसलों के साथ ही सब्जियों में भी उन्नत एवं अधिक उपज देने वाली प्रजातियों का विकास हुआ है। इस प्रकार की उन्नत प्रजातियों को अपनी समुचित वृद्धि के लिए पारंपरिक प्रजातियों की तुलना में अधिक मात्रा में पोषक तत्वों की जरूरत होती है।

ऐसे में फसलों की पोषक जरूरत को पूरा करने के लिए किसान बाह्य स्रोतों जैसे खाद एवं रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करता है। जिसके परिणाम स्वरूप कृषि क्षेत्र में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग निरंतर बढ़ता जा रहा है।

इस प्रकार लगातार अधिक मात्रा में रासायनिक उर्वरकों एवं दवाओं के प्रयोग उपभोक्ताओं का स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है वही दूसरी ओर मिट्टी की भौतिक एवं रासायनिक संरचना पर विपरीत प्रभाव पड़ा है।

दूसरी तरफ इसके परिणाम स्वरूप किसानों की खेती में आने वाली लागत भी साल दर साल बढ़ती जा रही है।

राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उर्वरकों की मांग, बढ़ती कीमतों तथा आपूर्ति के बीच बढ़ते अंतर को ध्यान में रखते हुए मानव, पशु, मृदा स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए जैविक कृषि तकनीक आज के समय की मांग है।

जैविक कृषि तकनीक भूमि की उर्वरकता एवं फसलों की उत्पादकता को अधिक समय तक स्थिर बनाए रखने के साथ ही मृदा में द्वितीयक एवं सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी भी नहीं होने देती है।

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जैविक खेती को प्रारंभ करने के लिए आपको अपने खेती किसानी के कार्य में थोड़ा सा परिवर्तन लाना होगा, जो निम्नवत् हैं-

कृषि कार्य में जैविक खाद का प्रयोग करें

जैविक खाद मृदा की भौतिक एवं रासायनिक संरचना तथा जैविक गुणों में सुधार करती है, इस लिए मिट्टी में जैविक पदार्थों की पर्याप्त उपलब्धता के लिए जैविक खादों का प्रयोग अनिवार्य है।

जैविक खादों को आप खुद ही बनाकर अपने खेतों में प्रयोग कर सकते हैं। आप गोबर, फसल अवशेषों, खरपतवार की पत्तियों, सूखी पत्तियों, गोमूत्र, हरी घास आदि से बहुत ही कम लागत में जैविक खाद बना सकते हैं।

जैविक खाद एवं खलीयों में निम्न प्रकार पोषक तत्वों की मात्रा होती है-

क्र.सं.जैविक खाद का नामनाइट्रोजन (प्रतिशत)फॉस्पफोरस (प्रतिशत)पोटाश (प्रतिशत)
1.गोबर की खाद0.5-1.50.3-0.90.3-1.5
2.ग्रामीण कम्पोस्ट0.5-1.00.4-0.80.8-1.2
3.शहरी कम्पोस्ट0.7-2.00.9-3.01.0-2.0
4.करंज खली3.8-4.00.8-0.91.0-1.2
5.नीम खली4.9-5.11.0-1.21.3-1.5
6.अरंडी खली4.1-4.31.6-1.81.1-1.3
7.मूंगफली खली7.1-7.31.3-1.91.1-1.3
8.नारियल खली2.8-3.01.7-1.91.7-1.9
9.सरगुजा खली4.6-4.81.6-1.81.0-1.3
10तिल की खली6.0-6.21.8-2.01.0-1.2
जैविक खाद तथा विभिन्न फसलों की खलियों में उपलब्ध पोषक तत्वों की मात्रा

अनाज व सब्जियों के साथ दलहन भी लगायें

सब्जी एवं मसाला वाली फसलों के बीच में दलहनी फसलों को मिश्रित फसल के रूप में उगाने पर सब्जी और मसाला फसलों के पौधों की वृद्धि काफी उत्साहजनक एवं गुणवत्तायुक्त होती है।

मिश्रित फसल पद्धति उत्पादन को बढ़ाने के साथ ही मिट्टी की उर्वरक क्षमता को बढाते हुये मृदा स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मददगार होती है।

दलहनी फसलें वायु मंडलीय नाइट्रोजन का यौगिकीकरण (नाइट्रोजन फिक्सेशन) कर अपनी जड़ों में एकत्र करने का कार्य करती हैं, बाद में फसल पकने के पर यह नाइट्रोजन मिट्टी में मिलकर उसे उपजाऊ बनानी है।

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विभिन्न दलहनी फसलों द्वारा किये जाने वाले नाइट्रोजन यौगिकीकरण की दर को निम्न सारणी से समझा जा सकता है-

क्र.स.फसल का नामनाइट्रोजन (कि.ग्रा.)/हैक्टर
1.लोबिया85-90
2.सोयाबीन55-60
3.मटर70-75
4.मूंगफली40-45
5.बीन (राजमा35-40
दलहनी फसलों द्वारा किये जाने वाले नाइट्रोजन यौगिकीकरण की दर

दलहनी एवं सब्जी फसलों को साथ लगाने से प्राप्त परिणाम

वर्ष 2013-14, 2014-15, एवं 2015-16 में कृषि विज्ञान केंद्र, पूर्णिया (बिहार) द्वारा दलहनी एवं सब्जी फसलों को एक साथ लगाने पर मिलने वाले परिणामों को जानने के लिए एक प्रयोग किया गया। जिसमें मिश्रित फसल के रूप में भिंडी के साथ लोबिया की बुआई कर यह परीक्षण किया गया।

इस प्रयोग में भिंडी एवं लोबिया को क्रमशः 2ः1 के अनुपात में लगाया गया। परिणाम स्वरूप इनकी औसत पैदावार क्रमशः भिंडी में 63.86 क्विंटल/हैक्टर व लोबिया में 27.30 क्विंटल/हैक्टर देखी गयी।

कृषि विज्ञान केंद्र, पूर्णिया (बिहार) के अनुसार इन फसलों से प्राप्त लाभ लागत का अनुपात सामान्य से 3.70 प्रतिशत तक अधिक प्राप्त हुआ। इसके अतिरिक्त मृदा में औसतन 40 से 60 किलोग्राम नाइट्रोजन का यौगिकीकरण भी हुआ।

खेत में जैविक रूप से नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाने के लिए हरी खाद का प्रयोग करें

खेतों में हरी खाद के प्रयोग से खेतों में जैविक पदार्थ के अतिरिक्त नाइट्रोजन की मात्रा को भी बढाया जा सकता है। इससे मिट्टी में पाये जाने वाले सुक्ष्म जीवों द्वारा सम्पंन की जाने वाली महत्वपूर्ण रासायनिक प्रक्रिया को भी तेज किया जा सकता है। इस प्रकार मिट्टी में पोषक तत्वों का संरक्षण भी बढ़ता है।

गिरिपुष्प (गिलरिसीडीया) एवं सुबबूल (ल्यूकायना) लगाकर इनके पत्तों का हरी खाद के रूप में प्रयोग किया जाता है। गिलरिसीडीया की एक टन हरी पत्ती में 30-40 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 3.0-3.2 कि.ग्रा. फॉस्फोरस एवं 15-25 कि.ग्रा. पोटाश मिलता है।

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प्रमुख हरी खादों से मिलने वाले पोषक तत्वों की औसत मात्रा को आप निम्न सारणी में देख सकते हैं-

क्र.सं.स्थानीय नामवैज्ञानिक नामनाइट्रोजन (प्रतिशत)
1.ढैंचासेस्बानिया एक्युलियाटा0.41-0.43
2.सनईक्रोटोलेरिया जन्सिया0.40-0.42
3.सेंजीमेलिलोअस आल्वा0.55-0.57
4बरसीमट्राइपफोलियम अलेक्सनड्रिनम0.44-0.46
हरी खाद में उपलब्ध औसत पोषक तत्वों की मात्रा

फसल अवशेषों के प्रयोग से बढ़ता है जैविक कार्बन

खेत में फसल अवशेषों के प्रयोग से मिटटी में जैविक कार्बन की वृद्धि होती है, जिससे मिट्टी में ह्यूमस बढ़ता है। इसके परिणाम स्वरूप अच्छी फसल प्राप्त होती है।

खेत में फसल अवशेषों के प्रयोग से मिट्टी में पोषक तत्वों की उपलब्धता में भी बढ़ोतरी होती है तथा मृदा की भौतिक संरचना में भी सुधार आता है।

विभिन्न प्रकार के फसल अवशेषों में पाये जाने वाले पोषक तत्वों की औसत मात्रा को आप निम्न सारणी में देख सकते हैं-

क्र.सं.फसल अवशेष का नामनाइट्रोजन (प्रतिशत)फॉस्पफोरस (प्रतिशत)पोटाश (प्रतिशत)
1.धान का भूसा0.30-0.500.20-0.500.30-0.50
2.मूंगफली का भूसा0.30-0.511.10-1.701.60-1.81
3.ज्वार का तना0.60-0.650.70-0.752.30-2.50
4.रागी का तना0.40-0.410.21-0.232.15-2.17
फसल अवशेष में पोषक तत्वों की मात्रा

केंचुआ खाद (बर्मी कम्पोस्ट) के प्रयोग से बढ़यें पैदावार

मिट्टी में पोषक तत्वों की उचित उपलब्धता फसल की उत्पादक क्षमता एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए भी अनिवार्य घटक है। यह उच्च कोटि की संतुलित जैविक खाद के प्रयोग से ही प्राप्त किया जा सकता है।

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार केंचुओं द्वारा तैयार की गयी जैविक खाद ही एक उच्च कोटि की संतुलित जैविक खाद होती है।

अच्छी गुणवत्ता की जैविक खाद में नाइट्रोजन 1.0 से 2.0 प्रतिशत, फॉस्फोरस 1.0 से 1.5 प्रतिशत तथा पोटाश 1.5 से 2.0 प्रतिशत तक और इसके अलावा अन्य सभी सूक्ष्म पोषक तत्व व विभिन्न प्रकार के एंजाइम उपलब्ध होते हैं।

जैविक खाद से प्राप्त होने वाले पोषक तत्व पौधों के विकास के लिए आवश्यक होते हैं। केंचुआ खाद मृदा की उर्वरकता और जलधारण क्षमता को भी बढ़ाने में सहायक होती है।

केंचुआ खाद का प्रयोग फसल बुआई से पूर्व 4.0 से 5.0 क्विंटल प्रति हैक्टर की दर से मिट्टी में मिलाकर किया जाता है। इसे और अधिक प्रभावी बनाने के लिए खाद को मिट्टी में मिलाने के बाद खेतों को पुआल या सूखी पत्तियों से मल्चिंग कर ढक देना चाहिए।

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इसके अतिरिक्त निम्न जैविक उत्पादों के प्रयोग से भी आप जैविक खेती को प्रभावी रूप से कम खर्च में कर सकते हैं-

जैविक खेती में बेसिलस थुरिनजेंसिस का प्रयोग

बेसिलस थुरिनजेंसिस को संक्षेप में बी.टी. के नाम से भी जाना जाता है। यह फूलगोभी एवं पत्तागोभी पर हीरक पीठ (डायमंड बैक मॉथ) का नियंत्राण करता है।

बेहतर फसल उत्पादन के लिए इसका 500 से 1000 ग्राम कल्चर प्रति हैक्टर, 650 लीटर पानी में घोलकर प्रत्येक 15 दिनों के अंतराल में छिड़काव किया जाना चाहिए।

जैविक खेती में ट्राइकोडर्मा का प्रयोग

ट्राइकोडर्मा एक जैविक फफूद नाशक है, जिसमें मुख्यतः ट्राइकोडर्मा विरिडी नामक फफूंद है। इसका प्रयोग आलू, हल्दी, अदरक, प्याज, लहसुन आदि फसलों के जड़ सड़न, तना गलन, झुलसा आदि रोग जो फफूंद से पैदा होते हैं, में एक प्रभावी जैविक रोग नियंत्रक के रूप में किया जाता है।

ट्राइकोडर्मा का प्रयोग टमाटर एवं बैंगन में जीवाणु से होने वाले (मुरझाने वाले) रोग की रोकथाम के लिए भी प्रभावी जैविक रोग नियंत्रक के रूप में किया जाता है।

ट्राइकोडर्मा का प्रयोग फसल बुआई के समय 2 से 4 ग्राम/कि.ग्रा. बीज उपचार के लिए पौधशाला में करना चाहिए। इसके अतिक्ति आप ट्राइकोडर्मा को 1.5 से 2.0 कि.ग्रा. प्रति एकड़ के हिसाब से खेत में अंतिम जुताई के समय 10 से 15 कि.ग्रा. सड़ी हुई गोबर की खाद में मिलाकर भी प्रयोग कर सकते हैं।

जैविक फसलों में कीट नियंत्रण के लिए नीम आधारित कीटनाशकों का प्रयोग करें

नीम आधारित कीटनाशकों का प्रयोग सफेद मक्खियों, भृंग, फुदका (जेसिड्स) कटुआ कीट, टहनी तथा फलछेदक सूंडी पर किया जाता है। यह कीटों के जीवनचक्र को कमजोर व निष्क्रिय कर एक सुरक्षा चक्र बनाता है।

सब्जी फसलों के लिए लगभग 700 लीटर नीम घोल प्रति हैक्टर के हिसाब से आवश्यकता होती है। इसी प्रकार नीम बीज का घोल बनाने के लिए 34 कि.ग्रा. नीम के बीज को पीसकर, 100 लीटर पानी में मिलाकर घोल बनाते हैं, जिसे लगभग 12 घंटे बाद कपड़े में छानकर फसलों में छिड़का जाता है।

फसलों में जैविक तरीकों से कीट व रोग नियंत्रण करने के लिए निम्न बातों का ध्यान रखें

  • बीज की अच्छी प्रतिरोधी किस्मों का प्रयोग करें।
  • गर्मी के मौसम में खेत की गहरी जुताई्र्र करें।
  • पलवार यानि मल्चिंग से खरपतवारों को नष्ट करें।
  • अपने खेतों में नमी बनाये रखें।
  • फसलों में समय पर सिंचाई करें और जलभराव होने पर उचित जल निकास का प्रबंधन करें।
  • खेतों में जैविक पोषक तत्वों का समुचित मात्रा में प्रयोग करें।
  • खेतों में करंज अथवा नीम की खली का प्रयोग करें।
  • फसलों में गंधपान (फैरोमोन ट्रेप) द्वारा कीट एवं रोग कारकों की रोकथाम करें।
  • विभिन्न वनस्पतियों जैसे नीम, तुलसी, लेंटाना, करंज, बिच्छु घास, अखरोट इत्यादि की पत्तियों से तैयार घोल के प्रयोग से फसलों में कीटों एवं रोगों को नियंत्रित करें।

तो दोस्तों आपको “जैविक खेती”  के बारे में दी गयी यह जानकारी कैसी लगी हमें कमेंट बॉक्स में लिखकर जरूर बताईये।

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आलेख:

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