सब्जी के लिए मटर की वैज्ञानिक खेती कैसे करें? | Sabji ke liye matar ki vaigyanik kheti kaise karen? | How to do scientific cultivation of peas for vegetables?
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किसान भाईयों नमस्कार!
आज का आलेख सब्जी मटर की वैज्ञानिक खेती पर आधारित है। अगर आप भी सब्जी के लिए मटर की खेती कर मुनाफा कमाना चाहते हैं या इस दिशा में सोच रहे हैं, तो आप बिल्कुल सही दिशा में जा रहे हैं। मैं आपके साथ सब्जी में उपयोग होने वाली मटर की वैज्ञानिक खेती से जुड़ी कुछ ऐसी महत्वपूर्ण जानकारीयां साझा करने जा रहा हूँ जो सच में आपको अधिक फायदा लेने में मदद करेंगी।
किसान भाईयों वैसे तो पूरे देश में भौगोलिक परिस्थिति व जलवायु के अनुसार सब्जी के लिए मटर की बुवाई के समय में थोड़ा- थोड़ा अंतर देखने को मिलता है। लेकिन इस आलेख को हम दो प्रकार की भौगोलिक स्थिति पर्वतीय तथा मैदानी क्षेत्र को ध्यान में रखते हुये लिख रहे हैं। ताकि दोनों ही भौगोलिक स्थिति में खेती करने वाले हमारे किसान भाई जानकारी का लाभ उठा सकें।
किसान भाईयों आगे के आलेख में मैं आपको दोस्तो करके संबोधित करूँगा। क्योंकि मुझे लगता है कि दोस्त शब्द हमें युवा और जोश से भरा हुआ लगता है। यह आपको और मुझे एक तरह से जोड़ सा देता है, जिससे मैं आपको दिल से जानकारी देने में खुद को भी गौरवांवित महसूस करता हूँ।
जबरदस्त मुनाफे के साथ ही खेतों के स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक है मटर की खेतीः
तो दोस्तों आपको जानकर हैरानी होगी कि मटर की खेती से न केवल हमें आर्थिक लाभ होता है, वरन यह हमारे खेतों के स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक होती है। अरे आप तो खेतों के स्वास्थ्य की बात से हैरान हो गये! अरे भाई वास्तव में हमारे खेतों और मिट्टी का भी अपना स्वास्थ्य होता है। जिसमें अगर थोड़ा भी गड़वड़ी हो गई तो समझिये फसल चौपट होना तय है।
आपके खेतों के स्वास्थ्य की देखरेख के लिए तो एक नया आलेख आपके लिए लेकर आऊँगा। लेकिन यहाँ इतना बता देता हूँ कि मटर किस तरह आपके खेतों के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है। खेत को उपजाऊ बनाने में नाईट्रोजन या नत्रजन जो भी आप कह लें की बड़ी भूमिका होती है। जो आपकी फसल की बढ़वार व पोषण के लिए आवश्यक है।
मटर के पौधे में एक ऐसी कुदरती क्षमता है कि वह हमारी जलवायु में उपस्थित नाईट्रोजन को अपने अंदर सोख लेता है। जिसके बाद वह उसे अपनी जड़ों में छोटी-छोटी गाँठों के रूप में इकट्ठा कर लेता है। फसल पकने बाद यह नाईट्रोजन की गाँठें मिट्टी में मिलकर उसकी उर्वरा शक्ति को बढ़ाने का कार्य करती हैं। इस प्रक्रिया को वैज्ञानिक भाषा में नाईट्रोजन फिक्सेशन भी कहा जाता है।
तो दोस्तो यहाँ वो पुरानी कहावत बिल्कुल फिट बैंठती है कि ‘‘आम के आम गुठलियों के भी दाम’’ मिले ना आपको। तो देर किस बात की है? इस बार हो जाय सब्जी के लिए मटर की खेती।
सब्जी मटर के अच्छे उत्पादन के लिए जरूरी है अच्छी प्रजाति का चुनावः
दोस्तो अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए अच्छे व गुणवत्तापूर्ण बीज का होना बहुत ही जरूरी है। इसके बिना अच्छी फसल प्राप्त करने के साथ ही मुनाफा लेने कि चाह भी अधूरी रहने की संभावना होती है। इस लिए आप बुवाई के लिए उपयुक्त बीज का चुनाव अवश्य करें।
मैं नीचे कुछ मटर की प्रतातियों यानी किस्मों का नाम दे रहा हूँ जिनका उत्पादन विभिन्न भौगोलिक स्थितियों एवं जलवायु में अच्छा देखने को मिला है। आप चाहें तो उन नामों में से किसी एक अथवा एक से अधिक किस्मों का चुनाव भी अपने यहाँ बुवाई के लिए कर सकते हैं।
सब्जी मटर की अच्छी प्रजातियां या किस्मेंः
पर्वतीय क्षेत्रों के लिए उपयुक्त प्रजातियां कौन की हैं?
अर्किल, वी.एल. मटर 10, वी.एल. अगेती 7, वी.एल. मटर 11, पाहुजा वेलकम, आजाद मटर आदि का उत्पादन अच्छा देखा गया है।
पर्वतीय क्षेत्रों के लिए बौनी प्रजातिः पंत मटर 13, पंत मटर 14 आदि का उत्पादन अच्छा देखा गया है।
मैदानी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त प्रजातियां कौन की हैं?
बौनी प्रजातिः KPMR 522, अपर्णा, मालवीय मटर 15, पंत मटर 13, 14, 25, 74, पंत मटर 155 व 250 का उत्पादन अच्छा देखा गया है।
सामान्य प्रजातियांः पंत मटर 42 व 243 का उत्पादन मैदानी क्षेत्रों में अच्छा पाया गया है।
यहाँ जिन प्रजातियों का वर्णन किया गया है वह कृषि वैज्ञानिकों एवं किसानों के द्वारा उत्पादन के परिणामों के आधार पर आपको सुझाया जा रहा है। चुंकि भारत एक विशाल देश है और हमारे इस देश में कई अन्य अच्छी प्रजातियां भी उपलब्ध हैं। इस लिए आप अपनी सुविधानुसार किसी कृषि विश्व विद्यालय अथवा किसी प्रतिष्ठित बीज कम्पनी द्वारा इजाद की हुई किस्मों का ही प्रयोग बुवाई के लिए करें।
बुवाई के लिए मटर का बीज लेने से पूर्व बीज के प्रमाणिकरण की पुष्टि जरूर कर लें। इससे आप बीज के कारण भविष्य में होने वाली किसी भी समस्या से बच सकते हैं।
सब्जी के लिए मटर की बुवाई का सही समय क्या है?
दोस्तों आप अच्छी फसल प्राप्त कर सकें, आपको फसल समय पर प्राप्त हो और आपको बाजार में अच्छा मूल्य मिले इसके लिए समय पर फसल बुवाई होना भी आवश्यक है। अपनी जलवायु एवं भौगोलिक परिस्थिति के अनुसार आप फसल बुवाई का सही समय चुन सकते हैं।
मैदानी एवं मध्य पर्वतीय क्षेत्रों के लिएः अक्टुबर के मध्य से नवम्बर के मध्य तक।
उच्च पर्वतीय क्षेत्रों के लिएः प्रथम सप्ताह से सितम्बर मध्य तथा मार्च प्रथम सप्ताह से अप्रैल अंत तक।
मटर के बीज बुवाई की मात्रा कितनी होनी चाहिए?
सब्जी के लिए मटर उत्पादन कार्य में फसल की बढ़वार एवं अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए पर्याप्त मात्रा में बीज बुवाई करना एक अच्छी परम्परा होती है। बुवाई लाईन में तथा निर्धारित दूरी में करने से जहाँ अच्छी फसल प्राप्त की जा सकती है, वही फसल की देखरेख, निराई-गुड़ाई व तुड़ाई में भी आसानी होती है।
सामान्य प्रजाति में बुवाई दरः सामान्य प्रजाति में मटर की बुवाई दर 80 से 100 किलोग्राम प्रति हैक्टर तक की जानी चाहिए।
बौनी प्रजाति में बुवाई दरः बौनी प्रजाति में मटर बुवाई की दर 125 किलोग्राम प्रति हैक्टर की जानी ठीक रहती है। इसका प्रमुख कारण इस प्रजाति के मटर पौध का आकार छोटा होना है।
बुवाई के लिए अन्तरण अर्थात लाईन से लाईन की दूरी सामान्य प्रजातियों में लगभग 30 से.मी. तथा बौनी प्रजातियों में 20 से 25 से.मी. तक रखने से फसल में अच्छी बढ़वार एवं अच्छा उत्पादन मिलता है।
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मटर की बुवाई से पूर्व बीज को कैसे उपचार करें?
दोस्तो वैसे तो किसी भी प्रकार का बीज बोने से पूर्व उसे शोधित एवं उपचारित करना एक अच्छी परम्परा होती है। इसके कई फायदे होते हैं, जिसमें बीज के खराब होने की संभावना कम होना तथा उपचारित बीज से उगने वाले पौधे का अधिक स्वस्थ एवं रोग प्रतिरोधी होना प्रमुख हैं।
इससे बीज को मिट्टी के अंदर एक प्रकार का सुरक्षा कवच भी मिल जाता है जो उसके अंकुरित होने की संभावनाओं को कई गुना बढ़ा देता है। मटर के बीज को भी बुवाई से पूर्व उपचारित करने से उक्त लाभ प्राप्त होते हैं जो किसानों को होने वाली असंभावित हानि को कम कर देता है।
मटर के 10 किलोग्राम बीज को उपचारित करने के लिए 200 ग्राम राइजोबियम एवं 200 ग्राम पी.एस.बी. जैव उर्वरक की आवश्यकता होती है। बीज को उपचारित करने से पूर्व प्रति किलोग्राम बीज को 2 ग्राम थायरम शोधित कर लेना चाहिए। इसके बाद ऊपर बताई गई मात्रा के अनुसार जैव उर्वरकों से मटर के बीज को उपचारित करना चाहिए।
मटर की बुवाई से पूर्व खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग कितनी मात्रा में किया जाना चाहिए?
साथियों किसी भी फसल के लिए खाद व उर्वरक ठीक उसी प्रकार जरूरी हैं, जिस प्रकार हम इंसानों के लिए भोजन। जैसे अगर हमें अच्छा खाना वह भी अच्छी मात्रा में नहीं मिले तो हम कमजोर हो जाते हैं। हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। यही स्थिति हमारी फसलों के लिए भी लागू होती है।
फसल को भी अच्छे पोषण एवं बढ़त के लिए सही मात्रा में खाद व उर्वरकों की आवश्यकता होती है। आसान भाषा में खाद व उर्वरकों को एक प्रकार से फसलों या पौधों का भोजन भी कह सकते हैं। हम अपने खेतों में जैविक खाद, उर्वरकों एवं सुक्ष्म पोषक तत्वों को फसल पोषण के लिए डालते हैं। जिससे हमें अच्छी फसल प्राप्त हो सके।
अच्छा तो यह होता है कि आप खेतों में फसल बुवाई से पूर्व मिट्टी की जाँच कराने के बाद आवश्यक मात्रा में जैविक खाद, उर्वरकों एवं सुक्ष्म पोषक तत्वों को डालें ताकि मिट्टी में सभी प्रकार के जरूरी तत्व संतुलित मात्रा में मिल जायें। जिसका फायदा आपकी फसल को पूरी तरह से मिल सके।
जब आप सब्जी के लिए मटर की बुवाई करें तो फसल बुवाई से पूर्व निम्न मात्रा के अनुसार खाद व उर्वरक जरूर डालें-
- गोबर की सड़ी खाद: 60 कुन्तल प्रति हैक्टर के हिसाब से बुवाई करने से पूर्व मिटटी में मिला दें। कच्चे गोबर की खाद का प्रयोग खेतों में नहीं करना चाहिए। इससे खेत में कई प्रकार के नुकसान पहुँचाने वाले कीटों की मात्रा बढ़ती है। जिससे फसल को फायदे के स्थान पर भारी नुकसान भी पहुँच सकता है।
- उर्वरक की मात्रा: मिट्टी की जाँच के आधार पर अथवा लगभग सभी प्रजातियों के लिए प्रति हैक्टर 20 किलोग्राम नत्रजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस, 40 किलोग्राम पोटाश तथा 30 किलोग्राम गंधक को बुवाई से पूर्व मिट्टी में मिलाया जाना चाहिए।
मटर की फसल में खरपतवार नियंत्रण कैसे करें?
फसलों में खरपतवार उगने की समस्या आम बात है। जिसे किसान समय-समय फसल की निराई-गुड़ाई कर कुटले अथवा खुर्पी की मदद से उखाड़ देता है। अगर फसल में समय पर खरपतवार प्रबंधन नहीं किया गया तो यह खरपतवार हमारी अच्छी खासी फसल की बैंड बजा सकते हैं। अरे शादी वाला बैंड नहीं यादि फसल को बरबाद कर सकते हैं।
आजकल जैविक खेती का बोलबाला है और लोग अपने बेहतर स्वास्थ्य को देखते हुये जैविक रूप से उत्पादित साक-सब्जी ही खाना पसंद करते हैं। इसके लिए वह जैविक सब्जी को अधिक पैसा देकर भी खरीद लेते हैं। अब अगर आप अपने ग्राहक को जैविक रूप से उत्पादित मटर बेचना चाहते हैं और अधिक मुनाफा चाहते हैं, तो मैं आपको खरपतवार नियंत्रण के लिए उटपटांग रसायनों के प्रयोग से बचने की ही सलाह दूंगा।
आप फसल में उगने वाले खरपतवार को आपने हाथों से उखाड़ कर उसका प्रयोग हरी खाद या कम्पोस्ट बनाने में बेहतर कर सकते हैं। आप चाहें तो आप अपने जानवरों को चारे के रूप में भी इसे खिला सकते हैं। बदले में वह आपको पौष्टिक दूध के साथ ही गोबर भी देंगे। जिससे आप बेहतरीन खाद बना सकते हैं।
लेकिन अगर आप खरपवार से बहुत दुःखी हो गये हैं और ऊपर दी गई बातों से इत्तफाक नहीं रखते हैं, तो आप अपनी फसल में खरपतवार नाशक रसायनों का प्रयोग भी कर सकते हैं। इसके लिए प्रति हैक्टर पेन्डीमिथेलिन 35 ई.सी. की 3.3 लीटर मात्रा को 500 से 600 लीटर पानी में घोलकर बुवाई के तुरंत बाद में खेतों में छिड़क कर खरपतवारों को नियंत्रित किया जा सकता है।
मटर की फसल में सिंचाई कब करें?
दोस्तो इंसान की तरह ही पेड़-पौधों और फसलों को भी अपने विकास व जीवन चक्र को चलाने के लिए पानी की आवश्यकता होती है। यह पानी उन्हें मिट्टी में होने वाली नमी से मिलता है यानि पेड़-पौधे मिट्टी की नमी से अपनी जड़ों के माध्यम से पानी पीते हैं। मटर की फसल को भी अच्छी बढ़वार और उत्पादन के लिए पानी की जरूरत होती है।
अगर समय पर बरसात न हो तथा जड़ों में नमी कम हो जाय तो एक सिंचाई मटर में फूल लगने से पहले तथा दूसरी सिंचाई फली में दाना भरते समय करना काफी फायदेमंद होता है। बहुत अधिक मात्रा में सिंचाई नहीं करनी चाहिए इससे फसल में सड़न का खतरा होता है।
मटर की फसल में रोग एवं कीट प्रबंधन व नियंत्रण कैसे करें?
दोस्तो अन्य फसलों की तरह ही मटर की फसल में भी किटों का प्रकोप आम बात है। जिसके नियंत्रण लिए किसानों को रोग एवं कीट की सही पहचान होना बहुत जरूरी है। ताकि लक्षणों के आधार पर समय पर बचाव के लिए उपाय किये जा सकें।
आम तौर पर किसान आधी अधूरी जानकारी के कारण गलत दवाओं एवं रसायनों का प्रयोग अपने खेतों पर कर देते हैं जिससे फसल के साथ ही खेतों की उर्वरा शक्ति पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है।
आप इस समस्या से बच सकें इसके लिए मटर की फसल में लगले वाले रोग एवं कीटों के प्रबंधन व नियंत्रण की जानकारी निम्न प्रकार लक्षणों के साथ बताई जा रही है। जिसका प्रयोग करते हुये आप अपनी फसल एवं अपने खेतों को होने वाले संभावित नुकसान से बचाते हुये अपनी फसल की सुरक्षा कर सकते हैं।
1. बीज व जड़ विगलन (Seed & Root Rot ):
प्रमुख लक्षण: अंकुरण से पूर्व व उगने के बाद बीज गल जाते है।
नियंत्रण के उपायः कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम या थीरम 2.5 ग्राम या टा्रइकोडर्मा विरडी 5 ग्राम/किग्रा बीज की दर से बीज को उपचारित करें। अधिक नमी से रोग का प्रकोप बढ़ जाता है, अतः खेतों में उचित जल निकासी का प्रबंध करें।
2. म्लानि या उकठा (Wilt):
प्रमुख लक्षण: पत्तियों का सिकुड़ना, पौधे का सूखना एवं ऊपरी भाग का झुकना इसके मुख्य लक्षण हैं। तने को चीरकर देखने पर ठीक से पता लगाया जाता है।
नियंत्रण के उपायः बीजोपचार पुर्ववत् कार्बेन्डाजिम 16 ग्राम दवा को 16 लीटर पानी में मिलाकर प्रतिनाली की दर से छिड़काव करना लाभदायक होता है।
3. चूर्णिल आसिता (Powdery mildew):
प्रमुख लक्षण: पौधे की पत्तियां, तनों, फलियों पर सफेद चुर्ण की परत दिखाई पड़ती है। रोग का प्रकोप शुष्क एवं गर्म मौसम में अधिक होता है।
नियंत्रण के उपायः बारीक गंधक (0.5 ग्राम प्रति नाली) का बुरकाव अथवा घुनलशील गंधक (32 ग्राम प्रति 16 लीटर पानी मेंं) डिनोकैप 48 ई.सी. (8 मिली प्रति 16 लीटर पानी में) का छिड़काव करना लाभदायक होता है।
4. सफेद विगलन (White rot):
प्रमुख लक्षण: पौधे के निचले तथा ऊपरी भागों में फरवरी- मार्च में सफेद रुई सी दिखाई देती है और प्रभावित भाग गलने लगता है। रोगी भागों में फफुंद के काले-काले सख्त ढाचें बनते हैं।
नियंत्रण के उपायः प्रतिनाली कार्बेन्डाजिम के 16 ग्राम को 16 लीटर पानी में घोल बनाकर पौधों के निचले भागों में छिडकाव करें। पौधों की डण्डियों को सहारे देकर जमीन की सतह से ऊपर रखें।
5. फली भेदक (Pod borer):
प्रमुख लक्षण: इस कीट की सूंडी मटर के फली में छेद करके दानों को खाती हैं।
नियंत्रण के उपायः मैलाथियान 50 ई.सी. का 32 मि.ली. अथवा इण्डोक्साकार्ब का 16 मि.ली. प्रति 16 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति नाली की दर से छिड़काव करें। इसके बाद मटर की तुड़ाई कम से कम 10 दिन के बाद करनी चाहिए।
6. पत्ती सुरंगक कीट (Leaf miner):
प्रमुख लक्षण: इस कीट की सूंडी पत्तों के ऊपरी और नीचे के हरे भाग को खाकर सुरंग बनाती हैं। जिससे पत्ती पर साँप की तरह सफेद लाईन दिखाई देती है।
नियंत्रण के उपायः चिपकने वाला पीला प्रपंच (टै्रप) का प्रयोग करें क्यांकि यह वयस्क मंक्खियों को आकर्षित करके अपने में चिपका लेता हैं। मैलाथियान 50 ई.सी. की 32 मि.ली. मात्रा अथवा कारटाप हाड्रोक्लोराइड 50 एस.पी. की 16 ग्राम मात्रा को 16 लीटर पानी में घोलकर प्रति नाली की दर से छिड़काव करना लाभदायक रहता है।
7. माहू (Aphid):
प्रमुख लक्षण: यह कीट पत्ती, तने, फूल एवं फलियों से रस चूसकर हानि पहुँचाते हैं। अधिकांशतः यह डंठलों पर लगे दिखाई देते हैं।
नियंत्रण के उपायः प्रकृतिक रूप से माहू को एक परभक्षी कीट सप्तभृंग (Coccinella Aepterpunetata)खाकर खत्म कर देते हैं। ज्यादा प्रकोप होने पर मिथाइल डिमेटान 25 ई.सी. की 16 मि.ली. मात्रा या एसीटामिप्रिड 20 एस.पी. की 5 ग्राम मात्रा का 16 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति नाली की दर से छिड़काव करने से लाभ मिलता है।
नोट: यहाँ “नाली” का अर्थ 200 वर्गमीटर भू-भाग से है। यह उत्तराखंड में जमीन को मापने की प्रमुख इकाई है।
मटर की फलियों की तुड़ाई एवं संग्रहण कैसे करें?
फलियों में दाने भरने एवं परिवक्व होने पर उचित समय में हरी फलियां तोड़नी चाहिए। फलियों को अधिक समय तक पेड़ में छोड़ने से वो भूरी पड़ने लगती हैं। जिससे फली की गुणवत्ता में कमी आ जाती हैं। मटर की परिपक्वता अवधि के अनुसार फलियों की तुडाई करनी चाहिए।
मटर की हरी फलियों को तुडाई के बाद एक स्थान पर लम्बी अवधि के लिए नहीं रखना चाहिए। नमी के कारण फलियों में रोग लगने एवं उनके सड़ने की सम्भावना अधिक होती है। फलियों को बाजार भेजने से पूर्व किसी सूखे एवं ठंडे स्थान पर इकट्ठा करना चाहिए। बाजार भेजने के लिए जूट की बोरियों का प्रयोग किया जा सकता है।
तो दोस्तों आपको सब्जी मटर की वैज्ञानिक खेती के बारे में दी गई यह जानकारी कैसी लगी हमें जरूर बताईये।
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आलेखः
पंकज सिंह बिष्ट