विदेशी सब्जियों के उत्पादन में किसानों का मुनाफा ही मुनाफा
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किसान मित्रों नमस्कार!
हमारे आस-पास की दुनियां काफी तेजी से बदल रही है। लोगों का रहन-सहन हो, पहनावा हो या फिर खान-पान सब कुछ तेजी से बदल रहा है। जब खान-पान में बदलाव की बात आती है तो फिर कही न कही हम सभी किसान बंधुओं पर भी इसका प्रभाव पड़ता ही है।
अब आप कहेंगे इन सबसे हम किसान कैसे प्रभावित हुये भला? तो भाई खान-पान में प्रयुक्त होने वाली सामग्री जैसे- फल, अनाज, सब्जियां, दालें और तेल, डेरी उत्पाद जैसे दूध, मीट और अण्डा लगभग सभी खाद्य पदार्थ जिन्हें इंसानों द्वारा खाया जाता है। उनका उत्पादन कहीं न कहीं आप और हम जैसे किसान ही करते हैं।
तो भला अब बताईयें अगर लोगों का खान-पान बदलता है तो उसका प्रभाव किसानों और उसके द्वारा किये जाने वाले खेती किसानी पर पड़ेगा या नहीं? ये हुई ना बात! अब आपकी समझ में आ गया कि जिन उपभोक्ताओं को हम अपनी कृषि उपज बेचते हैं, अगर उनके खान-पान में बदलाव आ गया तो उसका असर हम पर भी पडे़गा।
परिणाम यह होगा कि जिस फसल को हम उगा रहे हैं सायद उसकी मांग कम हो जाय, उसकी कीमत न मिलें या फिर लोग उसका प्रयोग कम कर दें। इससे कही न कही आपकी आय और आपका मुनाफा कम होगा और धीरे-धीरे आपकी आर्थिक स्थिति भी प्रभावित होगी।
अब आप कहेंगे कि यह भी कोई बात हुई भला, रातों रात थोड़े ही ना हमारे ऊपर पहाड़ गिर जायेगा? या फिर कहीं आप यह सोचने लगें कि हम तो यूँ ही फालतू में आपको डराने लगे हैं।
तो मेरे भाईयों इतनी देर तक आपको समझाने का प्रयास इस लिए किया जा रहा है, ताकि आप समय की नजाकत को समझें। अपने खेती- किसानी के तरीके में बदलाव लायें, अपने ग्राहकों और बाजार की मांग पर ऐसी फसलों का उत्पादन करें, जिसकी मांग न केवल अच्छी हो साथ ही आपको कीमत भी अच्छी मिले।
तो इस आलेख में आपको हम ऐसी विदेशी सब्जी फसलों की जानकारी देने जा रहे हैं। जिनकी बाजार मांग पिछले कुछ वर्षों से काफी तेज गति से बड़ रही है और किसानों को इसका मूल्य भी काफी अच्छा मिल रहा है।
आप भी इन फसलों को अपनायें और अच्छा मुनाफा पायें इसके लिए आपको अपना थोड़ा समय इस आलेख को पढ़ने में खर्च करना होगा या फिर आप किसी किसान परिवार से हैं और आपके किसान परिजन पढ़ना न जानते हो तो आप इस जानकारी को उन्हें पढ़कर भी सुना सकते हैं।
एक बात और यह कि लेख थोड़ा लम्बा है, तो थोड़ा धैर्य से पढ़ेगे तो ही समझ में आयेगा। क्योंकि हमारा मानना है और कुछ विद्वानों ने भी कहा है कि आधी अधूरी जानकारी बड़ी घातक होती है।
आपको पढ़ने में आसानी हो इसके लिए ऊपर ज्ंइसम वि ब्वदजमदजे दिया गया है, इसके स्तेमाल से आप एक क्लिक पर सीधे ही अपने पसंद की जानकारी को पढ़ सकते हैं।
विदेशी सब्जियां किसे कहते हैं
आसान भाषा में विदेशी सब्जियां वह है जो मूल रूप से भारतीय नहीं हैं। इनकी पैदावार और प्रयोग हमारे देश में कुछ वर्ष पूर्व तक नहीं के बराबर किया जाता था। विदेशी सब्जियां स्वाद और पकाने के मामले में ज्यादा सरल होती हैं।
आज भारत में सुपर मार्केटों के खुलने के कारण इनकी मांग काफी तेजी से बढ़ने लगी है। अब भारतीय लोग भी इन्हें काफी पसंद करने लगे हैं। युवा लोग बैलेंस डाईड के रूप में इनका प्रयोग करने लगे हैं। कुछ शहरीय लोग तो खाने में इनका प्रयोग स्टेटस सिंबल के रूप में करने लगे हैं।
विदेशी सब्जियों में ब्रोकली, लाल पत्तागोभी, चाइनीज पत्तागोभी, पाक-चोई, सलाद, सेलेरी, केल, स्विस चार्ड, रूबर्ब चार्ड, अजमोद (पार्सले), जुकिनी, यूरोपीयन खीरा, बेबीकॉर्न, बेबी गाजर, चेरी टमाटर व विभिन्न रंगों वाली शिमला मिर्च आदि शामिल हैं।
उच्च मात्रा में पोषक तत्व, उच्च पौष्टिक मूल्य और असाधारण स्वाद इन विदेशी सब्जियों को युवाओं और सम्भ्रांत परिवारों के लिए आकर्षक बनाते हैं। इस सब्जियों में कम कैलोरी और पोषक तत्व जैसे- प्रति-ऑक्सीकारक (ऐटी-ऑसीडेंट), रेशा (फायबर), विटामिन और खनिज लवण अपेक्षाकृत अधिक होते हैं।
यही वह कारण हैं जिससे यह महानगरों और स्थानीय लोगों में बहुत लोकप्रिय हो गई हैं। इनमें से कुछ पत्तेदार सब्जियां जल्दी खराब होने वाली होती हैं, इन्हें तेजी से बाजार तक पहुँचाने की जरूरत होती है।
नगरीय क्षेत्र के करीबी बहुत सारे जागरूक किसान अब इन सब्जियों को बड़े पैमाने पर उगाने लगे हैं जिससे उन्हें अधिक आय अपेक्षाकृत अधिक आय भी प्राप्त हो रही है।
विदेशी सब्जी फसलों के उत्पादन के लिए उपयुक्त जलवायु
ऐसे क्षेत्र जहाँ की जलवायु ठंडी और नम हो विदेशी सब्जियों की खेती के लिए सर्वोत्तम होती है। इन सब्जियों की उचित वृद्धि एवं बढ़वार के लिए 15 से 20 डिग्री सेल्सियस का तापमान सही रहता है।
इन सब्जियों में पाले और अधिक सर्दी को सहने की अच्छी क्षमता होती है। दोमट मिट्टी जिसका पी-एच मान 6.5 से 7.5 हो, इन सब्जियों की अच्छी पैदावार के लिए सबसे उपयुक्त होता है।
विदेशी सब्जी फसलों की बुआई के लिए खेत की तैयारी
अपने खेतों में विदेशी सब्जियों की खेती के लिए दो से तीन बार कम से कम 15 सें.मी. गहरी जुताई कर खेत समतल कर लें। इसके बाद भूमि को इच्छित आकार की क्यारियों में बांट लें।
पौधशाला (नर्सरी) निर्माण के लिए क्यारियों को ऐसे स्थान पर बनाएं, जो अपेक्षाकृत ऊंचाई में हों और जहाँ पर सिंचाई जल आसानी से उपलब्ध हो।
मृदाजनित रोग (आर्द्र गलन) एवं कीटों (कटुआ कीट) की रोकथाम के लिए मिट्टी को सौर तापीकरण (पलवार बिछाकर) या कैप्टॉन या फायटोलोन (0.1 प्रतिशत घोल) अथवा फार्मेलिन (4 प्रतिशत घोल) से 3 लीटर प्रति वर्ग मीटर की दर से जरूर उपचारित करें।
उक्त के बाद वर्मीकम्पोस्ट को 5 कि.ग्रा. प्रति वर्ग मीटर की दर से बुआई से पहले मृदा में अच्छी तरह मिलाकर खेतों को तैयार करना चाहिए।
अगर मिट्टी ठोस हो अथवा मिट्टी में भुरभुरापन कम हो, तो आवश्यक मात्रा में बालू या तालाब की गाद वाली मिट्टी को मिलाकर क्यारियों व खेतों को तैयार करना चाहिए।
भूमि की सतह से 15 सें.मी. ऊंची क्यारियां बनाकर अधिक वर्षा व जलभराव से पौधों को होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है।
अधिकतम उच्च पैदावार प्राप्त करने के लिए अपने खेतों की मिट्टी की जाँच यानि मृदा परीक्षण अवश्य करायें।
क्यारियों में एक बार बुआई के बाद फसल अवशेषों या पतली पारदर्शी पॉलीथीन की चादर से ढक देंना चाहिए। इस प्रक्रिया को पलवार बिछाना या मल्चिंग कहते हैं। यह मिट्टी के तापमान को नियंत्रित करती है व मिट्टी की नमी को संरक्षित करने में मदद करती है।
अंकुरित पौधे की आवश्यक वृद्धि के लिए बुआई के दो दिन बाद पलवार या पॉलीथीन की चादर को हटा दीजिए।
विदेशी सब्जी फसलों की पौधशाला निर्माण हेतु तैयारी
लगभग सभी विदेशी सब्जियों के बीज काफी छोटे और काफी संवेदनशील भी होते हैं, इन सब्जियों की पौध को उगाने के लिए पौधशाला की मिट्टी को सही से भुरभुरा और उपचारित करना होता है। पौधशाला निर्माण में भी उक्त प्रकार खेत की तैयारी के लिए दिए गए निर्देशों का पालन करें।
सम्भव हो तो नर्सरी बनाने के लिए प्रो-ट्रे का प्रयोग करें। यह एक प्रकार से मृदारहित नर्सरी निर्माण की विधि है। इसमें मिट्टी के स्थान पर नारियल का बुरादा (कोकोपीट), वर्मीकुलाइट और परलाइट के मिश्रण (3ः1ः1) का प्रयोग किया जाता है।
आप वर्मीकुलाइट और परलाइट के स्थान पर कोकोपीट के साथ वर्मीकम्पोस्ट और बालू के मिश्रण (3ः1ः1) का प्रयोग कर सकते हैं। इस विधि से विदेशी सब्जियों की पौध तैयार करने में कम समय और बीज की बचत होती है और आपको स्वस्थ पौध प्राप्त होती हैं।
इस विधि द्वारा पौधशाला बनाने का एक और लाभ है। आपको जो पौध प्राप्त होती है वह कीट-व्याधियों से मुक्त होती है। पौधशाना निर्माण की इस विधि को छायादार जाली वाले सेडनैट में बनाया जा सकता है।
पौधशाला में विदेशी सब्जियों के बीज बोने की विधि
आप अपनी फसल को बीजजनित रोगों से बचाने के लिए सूखे बीजों का उपचार कैप्टॉन अथवा थीरम अथवा ब्रैसीकोल 3 ग्राम/ कि.ग्रा. बीज की दर से कर सकते हैं।
पौधशाला की क्यारियों में बीज को शीघ्र अंकुरित करने के लिए गोभीवर्गीय सब्जियों जैसे-ब्रोकली, चीनी पत्तागोभी, लाल पत्तागोभी एवं कद्दूवर्गीय सब्जियों जैसे-जुकिनी एवं यूरोपीय खीरा आदि के बीजों को रातभर पानी में भिगो कर बुआई कर सकते हैं।
ठीक से उपचारित बीजों को पंक्तियों में 2 से 3 सें.मी. की गहराई पर बोना उचित रहता है। इस दौरान पंक्ति से पंक्ति की दूरी 10 सें.मी. रखें। बुआई के बाद बीजों को तुरंत मिट्टी और रेत और अच्छी तरह से सूखे और छने हुए गोबर की पतली परत से ढक देना चाहिए।
क्यारियों अथवा प्रो-ट्रे की सहत को लकड़ी की सहायता से समतल कर देना चाहिए। बुआई के बाद बीजों को मिट्टी से ढककर हजारे से हल्की सिंचाई करनी चाहिए।
बीज के जमाव की गति को बढ़ाने के लिए क्यारियों को पारदर्शी पॉलीथीन की सीट से लगभग 48 घंटे के लिए ढक दें। जब बीज अंकुरित होने लगें तो पॉलीथीन को हटा दें।
आवश्यकता के अनुसार हजारे से हल्की सिंचाई देते रहें। इस प्रकार लगभग 40 से 45 दिनों में पौधशाला में पौध रोपण के लिए तैयार हो जाती हैं।
पौधों की रोपाई करने के 2 से 3 दिन पहले पौधशाला की सिंचाई नहीं करनी चाहिए। कद्दूवर्गीय सब्जियों की पॉलीबैग में पौधशाला तैयार करना उचित रहता है।
यदि आप पौधों को एक स्थान से दूसरे स्थान में ले जाना चाहते हैं, तो बीज की बुआई प्रो-ट्रे में करें। पौधशाला को बाहरी आघातों से बचाने के लिए प्रो-ट्रे में पौधशाला बनाना फायदेमंद होता है।
ट्रे में बीजों को 2.5 सें.मी. की दूरी पर व 1 से 2 सें.मी. (बीज के व्यास से 4 गुना) की गहराई पर यू-आकार के फर्रों में बोना चाहिए। इसके बाद जब पौधे में दो पत्तियां निकल आयें तब कोकोपीट के मिश्रण से भरी प्रो-ट्रे में पौधों को प्रत्यारोपित कर लें।
विदेशी सब्जियों की पौधशाला तैयार करने और पौध रोपण का सही समय
इस आलेख में बताई गयी विदेशी सब्जियां ठंडे देशों जैसे यूरोपीय के देशों की उपज हैं। इसलिए इनकी पौधशाला बनाने का सही समय भारत में मध्य अक्टूबर है। इस समय जब तापमान में गिरावट आने लगती तब इन सब्जियों की पौधशाला बनायी जा सकती है।
उत्तराखण्ड, हिमांचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश जैसे भारतीय राज्यों के साथ ही, अन्य देशों के उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में इन विदेशी सब्जियों को संरक्षित संरचनाओं जैसे-पॉलीटनल, पॉलीहाउस, ग्रीनहाउस आदि में वर्षभर उगाई जा सकता है।
सर्दियों के महीनों (अक्टूबर से मार्च) के दौरान जब रात का तापमान शून्य से कम हो जाता है, तब स्विस चार्ड, रूबर्ब चार्ड, लेट्यूस, पाक-चोई, सेलेरी, केल आदि जैसी पत्तेदार सब्जियों के साथ ही जड़ वाली सब्जियां जैसे यूरोपीयन गाजर को आराम से उगाया जा सकता हैं।
ठंडे स्थानों में सर्दियों की फसल के लिए पौधशाला की तैयारी अक्टूबर में और गर्मियों की फसल के लिए अप्रैल महिने में तैयारी करनी उचित रहती है।
यदि आप अक्टूबर में फसल बुआई करना चाहते हैं तो इसके लिए नर्सरी की तैयारी सितंबर में शुरू की जानी चाहिए। उच्च पहाड़ी इलाकों में कद्दुवर्गीय फसलों के लिए गर्मीयों का मौसम उपयुक्त रहता है।
सर्दियों के मौसम में उगाने के लिए उपयुक्त विदेशी सब्जियां
क्र.सं. | जड़ और पत्तेदार सब्जियां | रोपण दूरी पंक्ति से पंक्ति×पौध से पौध (सें.मी.×सें.मी.) |
1. | स्विस चार्ड, रूबर्ब चार्ड | 45×30 |
2. | लेट्यूस | 20×5 |
3. | लीक | 30×15 |
4. | पार्सले | 40×30 |
5. | केल | 50×50 |
6. | एंडाइव | 30×25 |
7. | सेलेरी | 45×30 |
8. | पाक-चोई | 20×10 |
9. | पार्सनिप | 30×15 |
क्र.सं. | गोभीवर्गीय सब्जियां | रोपण दूरी पंक्ति से पंक्ति×पौध से पौध (सें.मी.×सें.मी.) |
1. | ब्रोकली | 45×45 |
2. | चाइनीज पत्तागोभी | 45×20 |
3. | लाल पत्तागोभी | 45×30 |
4. | ब्रूसेल्स स्प्राउट | 60×40 |
गर्मियों के मौसम में उगाने के लिए उपयुक्त विदेशी सब्जियां
क्र.सं. | सब्जियां का नाम | रोपण दूरी पंक्ति से पंक्ति×पौध से पौध (सें.मी.×सें.मी.) |
1. | यूरोपीयन खीरा | पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 सें.मी. और क्यारी से क्यारी दूरी 150 सें.मी. (2 पंक्ति प्रणाली) |
2. | विभिन्न रंगों वाली शिमला मिर्च | 75×45 (कम दूरी में रोपाई के कारण फलों की संख्या कम हो जाती है।) |
3. | जुकिनी | 100×50 (उच्च तापमान पर अधिक रोग लगते की सम्भावना होती है।) |
4. | चेरी टमाटर | 90×60 (कम दूरी में रोपाई से बचें, युग्मित पंक्ति प्रणाली सबसे अच्छी है।) |
5. | बेबीकॉर्न | 45×15 (एग्रो शेडनेट वाले वर्षारोधी शेड में उगाया जा सकता है।) |
विदेशी सब्जियों की खेती में पोषक तत्व प्रबंधन
विदेशी सब्जियों की खेती में पोषक तत्व प्रबंधन के लिए आप जैविक फसल अवशेषों जैसे-खरपतवार, सब्जियों के पत्ते एवं डंठल आदि से तैयार खाद, वर्मीकम्पोस्ट व गोबर की खाद जैसी जैविक खादों का प्रयोग कर सकते हैं।
जैविक खादें आपके खेतों में रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग को भी कम करने व आपकी लागत को भी घटाने में मदद करता है।
फसल रोपाई की तैयारी के समय प्रति वर्ग मीटर भू-क्षेत्र में 2 से 5 कि.ग्रा. अच्छी तरह से विघटित जैविक खाद का प्रयोग सूक्ष्म और गौण पोषक तत्वों की आपूर्ति करने के लिए काफी होता है।
चेरी टमाटर, यूरोपीय खीरा जैसी फल वाली सब्जियों के लिए फलों के बनते समय एनपीके (19ः19ः19) उर्वरक को 5 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोलकर दो से तीन छिड़काव करना चाहिए।
यूरोपीय खीरे में पौध रोपण के 15 दिनों के बाद प्रत्येक तीन दिनों के अंतराल में एक बार एनपीके (19ः19ः19) 2 से 4 ग्राम/फर्टिगेशन (ड्रिप पंक्तियों के माध्यम से सिंचाई के पानी के साथ उर्वरकों की आपूर्ति) 90 दिनों तक करना चाहिए।
पत्तेदार विदेशी सब्जियों की प्रत्येक कटाई के बाद पुनः अच्छी वृद्धि प्राप्त करने के लिए अच्छी तरह से विघटित जैविक खाद 4 से 5 कि.ग्रा. प्रति वर्ग मीटर की दर से मिट्ी में मिलाना लाभदायक होता है।
विदेशी सब्जी फसलों में सिंचाई प्रबंधन
विदेशी फसलों की पौधशाला तैयार करने और खेतों में अच्छी पौदावार के लिए भूमि की तैयारी से पहले सिंचाई की व्यवस्था होना अनिवार्य है।
पॉलीहाउसों में फसल की जरूरत के अनुसार हजारे अथवा नालियों अथवा ड्रिप अथवा लेजर सिंचाई तकनीक से सिंचाई की जाती है। पानी के अधिकतम उपयोग के लिए ड्रिप सिंचाई अच्छी मानी जाती है।
आवश्यकता से अधिक सिंचाई से हवादार ग्रीनहाउस के अंदर अधिक नमी स्थिति पैदा होती है। इससे फसल में कीट-व्याधियों का प्रकोप होने की सम्भावनाऐं बढ़ जाती है। इस लिए उचित मात्रा में सिंचाई करना ठीक माना जाता है।
विदेशी सब्जियों की सिंचाई के लिए उपयुक्त अवस्थाएं
क्र.सं. | विदेशी सब्जी का नाम | सिंचाई के लिए उपयुक्त अवस्थाएं |
1. | पत्तेदार सब्जियां | सम्पूर्ण वृद्धिकाल में |
2. | ब्रोकली | फूल की वृद्धि एवं विकास की अवस्था में |
3. | चेरी टमाटर, विभिन्न रंगों वाली शिमला मिर्च | पुष्पण व फल विकास की अवस्था में और प्रत्येक कटाई के बाद |
4. | जुकिनी | कोंपल विकास, पुष्पण व फल विकास की अवस्था में |
5. | लाल पत्तागोभी | संपुट (सर) की वृद्धि एवं विकास की अवस्था में |
6. | बेबीकॉर्न | बुआई के 15 से 20 दिनों बाद, घुटनों से ऊंची अवस्था में व पुष्पण से पहले |
7. | यूरोपीयन खीरा | पुष्पण व फल विकास की अवस्था में |
विदेशी सब्जी फसलों की कटाई
गुणवत्ता युक्त उत्पादन के लिए पत्तेदार सब्जियों की कटाई पौध रोपाई के 45 से 50 दिनों के दौरान कर लेनी चाहिए। ऐसा न करने से पत्तियों के रेशे परिपक्व हो जाते हैं, जिसके कारण पत्तियों की गुणवत्ता में गिरावट आती है।
पूरी तरह तैयार निचली पत्तियों को मिट्टी की सतह से 5 सें.मी. छोड़कर इस प्रकार काटा जाना चाहिए कि पौधे की जड़ों को हानि न पहुंचे।
सब्जियों की कटाई के लिए निश्चित अंतराल एवं सुबह के समय का चुनाव करना चाहिए। पत्तेदार सब्जियों की एक से अधिक बार कटाई (मल्टीकट) लेने व पौधों की पुनः वृद्धि के लिए अच्छी तरह से विघटित जैविक खाद की 4 से 5 कि.ग्रा. मात्रा को प्रति वर्ग मीटर क्षेत्र की दर से प्रत्येक कटाई के बाद मिट्टी में मिला कर करना चाहिए।
कीटनाशकों के छिड़काव के तुरंत बाद सब्जियों की तुड़ाई अथवा कटाई न करें। फसल कटाई से पूर्व निश्चित् अंतराल (कीटनाशक छिड़काव और फसल कटाई के मध्य का निश्चित समय) का अनिवार्य रूप से पालन करें।
ब्रोकली की कटाई फूल की कलियों के पुष्पण से ठीक पहले जब कलियां पुष्ट और चुस्त हों, तब करनी चाहिए।
चेरी टमाटर और शिमला मिर्च जैसी विदेशी सब्जियों की तुड़ाई चयन लंबी दूरी के परिवहन के लिए फलों के रंग बदलने (हल्के हरे से हल्के लाल) की अवस्था में या पूरी तरह से लाल रंग की अवस्था में करना चाहिए।
यूरोपीय खीरे की तुड़ाई फल बनने के 15 से 18 दिनों बाद करनी चाहिए। जुकिनी की तुड़ाई वैसे तो फल बनने के बाद किसी भी अवस्था में की जा सकती है, लेकिन कोमल या जब फलों की लंबाई 15 सें.मी. के आसपास हो तो तुड़ाई कर लेनी चाहिए।
ठसी प्रकार बेबीकॉर्न की तुड़ाई आमतौर पर रेशम निकलने की अवस्था में की जाती है।
जड़ वाली विदेशी सब्जियों की खुदाई का समय
क्र.सं. | सब्जी का नाम | खुदाई का समय |
1. | यूरोपीयन गाजर | जड़ की मोटाई 2.5 से 3.0 सें.मी. होने पर |
2. | पर्सनिप | ऊपरी पत्ते पीले पड़ने अथवा जड़ की मोटाई 4.0 से 5.0 सें.मी. होने पर |
किसान खेती के लिए विदेशी सब्जियों का चयन इस प्रकार करें
वह किसान जो विदेशी सब्जियों की खेती करना चाहते हैं उन्हें बाजार मांग और मौसम के अनुसार सब्जियों का चयन करना चाहिए। यह सफल उत्पादन के लिए आवश्यक है।
अगर मौसम के अनुसार चयन किया जाय तो सर्दियों (अक्टूबर से मार्च) में विशेष रूप से पत्तेदार जैसे पाक-चोई, लेट्ट्यूस, सेलेरी, केल, स्विस चार्ड, रूबर्ब चार्ड, पारस्ले इत्यादि की खेती की जा सकती है।
इसके साथ ही सर्दिंयों में ही जड़ वाली जैसे-रुतबग्गा, यूरोपीयन गाजर, पार्सनिप इत्यादि और गोभीवर्गीय जैसे-लाल पत्तागोभी, चाइनीज पत्तागोभी, ब्रोकली, ब्रूसेल्स स्प्राउट इत्यादि की खेती की जा सकती है।
ग्रीष्मकालीन मौसम में पत्तेदार एवं जड़ वाली सब्जियों के साथ ही चेरी टमाटर, बेबीकॉर्न, जूकिनी, विभिन्न रंगों वाली शिमला मिर्च, यूरोपीयन खीरे की खेती करना लाभदायक है।
अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पाक-चोई, सेलेरी, ब्रोकली, लाल पत्तागोभी, चाइनीज पत्तागोभी गर्मियों के मौसम (अप्रैल से सितंबर के मध्य) में खुले मैदान में उगाई जा सकती हैं।
अधिक वर्षा के समय अधिकतम उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए इन्हें खुले खेतों में ही पॉलीटनल या लो -टनल में संरक्षित कर उगाया जा सकता है।
ग्रीनहाउस में विदेशी सब्जियों के उत्पादन में सावधनियां
क्र.सं. | यह करें | यह न करें |
1. | धूप के दिनों में गर्म हो जाने पर ग्रीनहाउस के दरवाजे व खिड़कियां खोल दें | अधिक रासायनिक कीटनाशों का प्रयोग न करें और पानी को ठहरने न दें |
2. | ज्यादा ठंड होने पर पॉलीथीन टनल बनाकर पौधों को सुरक्षित रखें | ऊंची-नीची, खड़ी ढलान वाले और छायादार स्थानों पर ग्रीनहाउस न बनाएं |
3. | फ्रेम को चिकना बनाएं ताकि पॉलीथीन न फटे | ग्रीनहाउस की छत को बहुत ऊंचा न बनाएं |
4. | प्रकाश संश्लेषण में सुधार के लिए, ग्रीनहाउस की छत से काई की नियमित सफाई करें | तेज धूप वाले दिनों में खिड़की बंद न रखें |
5. | फ्यूमिगेशन या सोलराइजेशन के साथ पौधों की नियमित निराई, गुड़ाई और उपचार सुनिश्चित करें | ग्रीनहाउस की छत पर धूल, काई व बर्फ आदि न जमने दें |
6. | मिट्टी में जरूरी पोषक तत्वों का आंकलन, पुनः पूर्ति के लिए मिट्टी की उर्वरता का नियमित परीक्षण करें | ठडं के महीनां के दौरान पर-परागित फसलें न उगाएं (परागण के लिए मधुमक्खियों व हाथ से परागण करना चाहिए।) |
विदेशी सब्जियों की खेती में कीट और रोग प्रबंधन
यदि आप विदेशी सब्जियों को ग्रीनहाउसों में उगाते हैं तो कीटों और रोगों आने आशंका कम होती है। यह एक प्रकार से संरक्षित संरचनाएं हैं, जो कीटों और रोगजनकों को पौधों के संपर्क में आने से बचाती हैं।
इसके अतिरिक्त मृदा और बीजजनित रोगों और कीटों की रोकथाम मृदा तथा बीज उपचार द्वारा की जा सकती है।
आर्द्र गलन (डैम्पिग ऑफ), तना गलन (स्टॉक रॉट), काला गलन (ब्लैक रॉट) और क्लब रॉट पौधशाला में लगने वाले मुख्य रोग हैं।
पत्तेदार या सलाद वाली सब्जियों के मुख्य रोग मृदु विगलन (सॉफ्ट रॉट), मृदुरोमिल आसिता (डाउनी मिल्ड्यू) हैं।
इन रोगों की रोकथाम के लिए बावेस्टीन या डाइथेन एम-45 की 1.5 से 2 ग्राम/ लीटर मात्रा का छिड़काव करना चाहिए।
पत्ती-हॉपर (पर्ण फुदका), वयस्क बीटल (भृंग), थ्रिप्स (लता कीट), फ्रूट फ्लाई (फल मक्खी), स्केल इन्सेक्ट (शल्क कीट), मिलीबग आदि से फसलों की सुरक्षा के लिए नीम के बीजों का अर्क (एनएकेई 500 से 2000 मि.ली./10 लीटर पानी) का एक रोगनिरोधी छिड़काव शाम के समय किया जाना चाहिए।
तो दोस्तों आपको “विदेशी सब्जियों के उत्पादन” के बारे में दी गयी यह जानकारी कैसी लगी हमें कमेंट बॉक्स में लिखकर जरूर बताईये।
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